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अशुद्धिः
तृतीया विभवित्त०
 
चयकप्रकरणे
 
श्रात्मवम्
 
वातककार
 
श्रवान्तरकरणं
 
दृष्टयत्वा
 
आपकार
 
तदुपत्तौ
 
मर्थन्तक्षणा
 
यदाहुः
कर्षत्
 
शुद्धिपत्रम्
 
शुद्धिः
 
तृतीयाविभक्ति ●
 
चयनप्रकरणे
 
आत्मानं
 
वार्तिककारैः
 
वातरकरणम्
 
दृष्टार्थत्वा
 
दुपकारक.
 
तदुत्पत्तौ
 
मत्वर्थ लक्षणा
 
तदाहुः
 
कर्षेत्
 
पृ०
 
१६
 
२०२६
 
४८
 
७३
 
"
 
८४
 
८८
 
१२५
 
१५१
 
१६३
 
प्राप्तिस्थानम् -
जयकृष्णदास-हरिदास गुप्तः-
चौखम्बा संस्कृत सीरिज आफिस,
विद्याविलास प्रेस, बनारस ।
 
पं०
 
३६
 
की
 
३१
 
२४
 
२५
 

 

 
२३
 
२६
 
१९
 
२०
 
ថ្ងៃនៅម
 
Prati