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जाने सख्यातक
जालोगीरुपचि
ज्योतिलेखावलयि,
 
तत्र व्यक्तं दृषदि
 
तत्र स्कन्दं नियतव
 
तत्रागारं धनपति
 
तत्रावश्यं वख्यकु
 
तन्मध्ये च स्फटिक
 
तन्वी श्यामा शिख
 
तंद्रायौ सरस
 
तस्माद्रच्छेदनुक
 
तस्मिन्काले जलद
 
तस्मिन्काले नयन
 
तस्मिन्नद्रौ कति
 
तस्य स्थित्वा
 
तस्याः किंचित्करधृ
 
तस्यास्तिक्तैर्वन
 
तस्यास्तीरे विहि
 
तस्याः पातुं सुरग
 
तस्योत्सङ्गे प्रणयिन
 
तामायुष्मन्मम च
 
मेघसंदेशे
 
पृष्ठम्
१३९
 
६७
 
८४
 
६५
 
१११
 
९२
 
११७
 
१२१
 
८१
 
७७
 
१४३
 
५९
 

 
S
 
तामुत्तीर्य व्रज
 
तामुत्थाप्य स्वजल
 
तां कस्यांचिद्भवन
 
तां चावश्यं दिव
 
तां जानीयाः परिमि
 
१४९
 
तेषां दिक्षु प्रथित
त्वन्निष्यन्दोच्छुसित
 
त्वय्यादातुं जलम
 
त्वय्यायत्तं कृषि
 
त्वामारूढं पवन
 
त्वामालिख्य प्रण
 
त्वामासारप्रशमित
 
दीर्घीकुर्वन्पटुमद
 
धूमज्योतिः सलिल
 
न त्यात्मानं बहु
 
६२
 
निश्वासेनाधर के
३४ नीचैराख्यं गिरिम
 
११४
 
नीपं दृष्ट्वा हरित
७९ नीवीचन्धोच्छुसन
 
९५
 
नूनं तस्याः प्रचल
 
नेत्रा नीताः सतत
 
पृष्ठम्
 
१४४
 
५८
 
२०
 
१२३
 
७०
 
३१
 
४८
 
१६२
 
१३४
 
Yo
 
१०४
 
१२६