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मुले
 
॥ श्रीः ॥
 
॥ श्लोकानुक्रमणिका ॥
 
अक्षय्यान्तर्भवन
 
अङ्ग्रेनाङ्गं तनु च
 
अद्रेः शृङ्गं हरति
 
अप्यन्यस्मिञ्जल
 
अम्भोबिन्दुग्रहण
 
आद्ये बद्धा विरह
 
आधिक्षामां विरह
 
आनन्दोत्थं नयन
 
आपृच्छस्व प्रिय
 
आराध्यैनं शरवण
 
सोधानु
 
आलोके ते निपतति
 
आश्वास्यैवं प्रथम
 
आसीनानां सुरभि
 
इत्याख्याते पवन
उत्पश्यामि त्वयि तट
 
पृष्ठम्
 
१८१
 
१५१
 
उत्पश्यामि द्रुतमपि
 
उत्सङ्गे वा मलिनवसने
 
एतत्कृत्वा प्रियमनु
 
एतस्मान्मां कुशलिन
 
२६
 
५२
 
१७६ एभिः साधो हृदय
 
१३५
 
कच्चित्सौम्य व्यवसि
कर्तुं यच्च प्रभवति
 
१३३
 
१८०
 
कश्चित्कान्ता
 
२३
 
गच्छन्तीनां रमण
 
६८
 
१२७
 
१८४
 
८०
 
१४७ छन्नोपान्तः परि
 
८९
 
जातं वंशे भुवन
 
गत्युत्कम्पादलक
 
गत्वा चोर्ध्वं दशमुख
 
गत्वा सद्यः कलभ
 
गम्भीरायाः पयसि
 
पृष्ठम्
 
३७
 
१२८
 
१७२
 
१६८
 
११८
 
२२
 
५६
 
१८२
 
८८
 
११९
 
६१
 
૩૨