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दप्रतिश्रुन्मिश्रित
त्वम्, दूरदेशह
समानधर्मो ग्राह्य
संगमो भविष्यव
परिपालकादिजन
वालंकारो ध्वन्य
षां श्लोकानां त
मिति उत्तरत्र क
इस्तेल
 
नीता
 
चूडापाशे
सीमन
 
अथ तत्र प
 
तथा वा, यथा य
सौभाग्यातिशय
हतोः प्रथमलि
 
'भमर रुअ दि
 
अंतंबिव पडिवु
 
रिते- 'कोमल
 
काठपत्रस्तं वि