ट्रन्स्लतोन्
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जो नीलकमल के समान श्यामवर्ण, कमल-नयन, जटाओंके मुकुटसे सुशोभित, हाथोंमें खड्ग, तूणीर, धनुष और बाण धारण करनेवाले, राक्षसों के संहारकारी तथा संसारकी रक्षा के लिये अपनी लीलासे ही अवतीर्ण हुए हैं, उन अजन्मा और सर्वव्यापक भगवान् रामका जानकी और लक्ष्मणजीके सहित स्मरण कर प्राज्ञ पुरुष इस सर्वकामप्रदा और पापविनाशिनी रामरक्षाका पाठ करे । मेरे सिरकी राघव और ललाटकी दशरथात्मज रक्षा करें ॥ २-४ ॥
जो तरुण अवस्थावाले, रूपवान्, सुकुमार, महाबली, कमलके समान विशाल नेत्रोंवाले, चीरवस्त्र और कृष्णमृगचर्मधारी, फल-मूल आहार करनेवाले, संयमी, तपस्वी, ब्रह्मचारी, सम्पूर्ण जीवोंको शरण देनेवाले, समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसकुलका नाश करनेवाले हैं, वे रघुश्रेष्ठ दशरथकुमार राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ॥ १७-१९ ॥
(भगवान का कथन है कि ) राम, दाशरथि, शूर, लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघूत्तम, वेदान्तवेद्य, यज्ञेश, पुराणपुरुषोत्तम, जानकीवल्लभ, श्रीमान् और अप्रमेयपराक्रम – इन नामोंका
राजाओं में श्रेष्ठ श्रीरामजी सदा विजयको प्राप्त होते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् रामका भजन करता हूँ। जिन रामचन्द्रजीने सम्पूर्ण राक्षससेनाका ध्वंस कर दिया था, मैं उनको प्रणाम करता हूँ । रामसे बड़ा और कोई आश्रय नहीं है। मैं उन रामचन्द्रजीका दास हूँ। मेरा चित्त सदा राममें ही लीन रहे; हे राम ! आप मेरा उद्धार कीजिये ॥ ३७ ॥