प्रकाश
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दम्भपूर्वक उद्धत हो कर धर्म का आचरण नहीं करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार से किया गया धर्म अन्त में निष्फल ही होता है। कर्ण ने ब्राह्मण का छद्मवेष धारण कर परशुराम से अस्त्रविद्या सीखी । उनसे उसने ब्रह्मास्त्र प्राप्त किया, लेकिन कपट का भण्डाफोड़ हो जाने पर उसे वर के स्थान पर यह शाप मिला कि तुम्हारा ब्रह्मास्त्र निष्फल होगा ॥ २१ ॥
मनुष्य को मृत्यु के बाद पुनः स्मरण की जाने पर यश रूपी शरीर को जीवित रखने वाली प्रसिद्धि की रक्षा करनी चाहिए। राजा इन्द्रद्युम्न मरने के बाद स्वर्ग गया। पुण्य क्षीण हो जाने के बाद जब वह फिर मृत्युलोक में आया तो एक दीर्घजीवी
किसी को कुछ देने का वायदा करने पर अथवा जिसे नियत समय पर दान दिया जाता हो उसे बिना माँगे ही खुद दे देना चाहिये । न तो उसे माँगना पड़े और न किसी के दबाव डालने पर ही दिया जाय । ऐसा न करने से बदनामी होती है । राजा द्रुपद ने गुरु द्रोणाचार्य को राज्य मिलने पर उसका कुछ हिस्सा दे देने का वायदा किया था, किन्तु राज्य मिलने पर उसने उन्हें नहीं दिया तो द्रोणाचार्य ने अर्जुन के द्वारा उस पर आक्रमण कराकर उससे अपना हिस्सा ले लिया था ॥ ६८ ॥