This page has not been fully proofread.

पृष्ठम्
 
ज्ञानादयो द्वादश यस्य २८०
 
ज्ञानादिषु स्थितोऽप्येवं
 
ज्ञानेन चात्मानमुपैति
 

 
ततो राजा धृतराष्ट्रो
 
तत्प्रतिष्ठा तदमृत
 
तदर्थमुक्त तप एत०
 
तदर्धमास पिबति
 
लोकानुक्रमणिका |
 
G
 
२66
 
१७५
 
तदेतदका सस्थित
 
तद्वै महामोहनमिन्द्रि
तपोमूलमिद सर्व
 
तस्माच्च वायुरायातः
 
तस्मात्सदा सत्कृत:
 
तस्मिन्स्थितो वाप्युभय २१८
 

 
२४४ . न चेद्वेदा वेदविद
 
२४७
 
३०५
 
तस्य सम्यक्समाचारम् २२३
तस्यैव नामादिविशेष
 
तूष्णीभूत उपासीत
 
ते मोहितास्तद्वशे
 
दोषैरेतैर्वियुक्त तु
 
दोषो महानत्र विभेद •
 
द्वादश पूगाः सरितो
द्वाराणि सम्यक्प्रवदन्ति
 
द्विवेदाश्रैकवेदाश्च
 

 
दमोऽष्टादशदोष: स्यात् २५२
 
देहोऽप्रकाशो भूताना
 
न च्छन्दासि वृजिनात्
 
न वेदाना वेदिता
 
न वै मानश्च मौन च
 
न माहश्ये तिष्ठति
 
नाभाति शुक्लृमिव
 
नास्य पर्येषण गच्छेत्
 
नित्यमज्ञातचर्या मे
 
निवृत्तेनैव दोषेण
 
निष्कल्मष तपस्त्वेतत्
 
२८२
 
२६७ नैतद्ब्रह्म त्वरमाणेन
 
नैन सामान्यूचो वापि
नैबक्षु तन्न यजुःषु
 

 
पितामहोऽस्मि स्थविरः
 
३४३
 
पृष्ठम्
 
२५७
 
२३४
 
२५८
 
२४०
 
२६३
 
२३२
 
२२५
 
२५७
 
२४६
 
२७४
 
२८५