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आमाति शुक्लमिव
 
आस्यादेष निःसरते
 

 
इन्द्रियेभ्यश्च पञ्चभ्यः
 
इम यः सर्वभूतेषु
 

 
उभे सत्ये क्षत्रियाद्य
 
उभौ च देवौ पृथिवी
 
उभौ लोकौ विद्यया
 

 
ऋचो यजूंष्यधीते यः
 

 
एक पादं नोत्क्षिपति
 
एकवेदस्य चाज्ञानात्
एकैकमेते राजेन्द्र
 
एतेन ब्रह्मचर्येण
 
एतेनैव सगन्धर्वा:
 
एव दोषा दमस्योक्ताः
 
एवं मृत्यु जायमानं
 
एवरूपो महानात्मा
 
एवं ह्यविद्वान्परियाति
 
सनत्सुजातीये
 
पृष्ठम्
 
२८३
 
१९२
 
कथ समृद्धमत्यर्थ
कर्मोदये कर्मफला •
 
कल्मष तपसो ब्रूहि
कस्यैष मौनः कतरन्नु
 
कामल्यागश्च राजेन्द्र
 
१७८ कामानुसारी पुरुषः
 
२५८
 
३०६ कालेन पाद लभते
 
३०२
 
२०२
 
३०३
 
२९८
 
२५९
 
२४९ गूहन्ति सर्पा इव
 
२८१
 
२८१
 
चक्रे रथस्य तिन्त
 
पृष्ठम्
 
१९४
 
कोऽसौ नियुके तमज
 
को ह्येवमन्तरात्मान
 
२२७
 
क्रोधः कामो लोभमोहौ २४८
 
क्रोधादयो द्वादश
 
२४७
 
छन्दांसि नाम द्विपदां
 

 
ज्ञान च सत्य च दमः
 
२३७
 
२५४
 
१९९
 
२८०
 

 
गत्वोभयं कर्मणा भुज्यते २२०
 
२६२
 
२५१