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उपाधितादात्म्य
 
उपाधिभेदात्स्वय
 
उपाधिरायाति स एव
 
उपाधिसंबन्धवशात्
 
उभयेषामिन्द्रियाणां
ऋणमोचनकर्तारः
एकमेव सदनेक
एकात्मके परे तत्त्वे
एकान्तस्थितिरिन्द्रियो
 
एतत्रितयं दृष्टं
 
एतमच्छिन्नया वृत्त्या
एतयोर्मन्दता यत्र
एताभ्यामेव शक्तिभ्यां
एतावुपाधी परजीवयो
एवं विदेहकैवल्यं
एष स्वयं ज्योतिर
एष स्वयंज्योतिरशे
एषावृतिर्नाम
एषोऽन्तरात्मा पुरुष:
एक्यं तयोर्लक्षितयोर्न
कंचित्कालंसमाधाय
कः पण्डितः सन्सद
कथं तरेयं भव
कबलित दिननाथे
कर्तापि वा कारयिता
 
कतृत्वभोक्तृत्वखलत्व
 
कर्मणा निर्मितो देहः
 
कर्मेन्द्रियैः पञ्चभिः
 
कल्पार्णव इवात्यन्त
 
कस्तां परानन्द
काम: क्रोधो लोभ
 
कामानी कामरूपी
 
कार्यप्रवर्तनाद्वीजा
 
किं हेयं किमुपादेयं
 
श्लोकानुक्रमणिका
 
२४१
 
किमपि सततबोधं
 
१९६ कुल्यायामथ नद्यां
कृपया श्रूयतां
 
२५४
 
१२३ केनापि मृद्भिन्नतया
 
१७
 
को नाम बन्धः
 
कोशैरन्नमयाद्यैः
 
क्रियानाशे भवेच्चिन्ता
 
३६
 
१५६
 
२१७ क्रियान्तरासक्तिम
 
२००
 
१९२
 
२०६
 
२१
 
२६२
 
२०६
 
७५
 
८८
 
९७
 
१४८ गच्छंस्तिष्ठन्नुपवि
 
२६६
 
१४८
 
२४९
 
१८६
 
२९
 
क्रिया समाभिहारेण
 
क्वगतं केन वानीतं
 
क्वचिन्मूढो विद्वान्
क्षीरं क्षीरे यथा क्षिप्तं
 
क्षुधां देहव्यथां त्यक्त्वा
 
२६३
 
१७७
 
२५०
 
गुणदोषविशिष्टेऽस्मिन्
 
गुरुरेष सदानन्द
 
घटं जलं तद्गतमर्क
 
घटकलशकुसूल
 
घटाकाशं महाकाश
 
घंटे नष्टे यथा व्योम
 
घटोदके बिम्बितमर्क
 
घटोsयमिति विज्ञातुं
 
चलत्युपाधौ प्रतिबिम्ब
 
९७
 
चित्तमूलो विकल्पो
चित्तस्य शुद्धये
२५८ चिदात्मनि सदानन्दे
 
२५७
 
२४२ चिन्ताशून्यमदैन्य
 
१०९ छायया स्पृष्टमुष्णं वा
 
२१७ छायाशरीरे प्रति
३६० छायेव पुंसः परि
 
७५
 
जन्तूनां नरजन्म
जन्मवृद्धिपरिणत्य
 
जलं पङ्कवदस्पष्टं
 
जलादिसंपर्कवशात्
 
२७१
 
२२०
 
२६५
 
३३
 
१४२
 
३४
 
१०१
 
१७९
 
१९७
 
२११
 
२५०
 
२६३
 
२६५
 
२६२
 
२६१
 
२३१
 
२६७
 
२३७
 
२०७
 
१६७
 
२७५
 
१३७
 
२६१
 
२५८
 
२२०
 
१६८
 
२६२
 
२५६
 
१०८
 
२२२
 

 
१५६
 
१३०
 
१६२