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अत्याभिसन्धानरतो
 
• सम्द्धं स्वतः सिद्धम्
मनि ब्रह्मणि
त्मकत्वविज्ञान
परमातम्
देवदत्तोऽयमितीह
 
वेदं सर्व जगत्
 
करूपस्य चिदा
 
नं चिद्धनं नित्यं
 
ब्रह्मकार्यं सकलं
 
वासनास्फूर्ति
सन्तु विकाराः प्रकृतेः
 
सन्त्यन्ये प्रतिबन्धाः
 
सनाप्यस राप्यु
समाघातुं बाह्यदृष्ट्या
समांधि न
 
समाधिना साघु
 
समाहितान्तःकरणः
 
समाहितायां सति
 
समाहिता ये प्रविलाप्य
 
समूलकृत्तोऽपि
समूलतत्पराह्य
 
सम्बोषमात्रं परिशुद्ध
 
सम्यक्पृष्टं त्वया
 
सम्यग्विचारतः
 
सम्यग्विवेकः स्फुट
 
INDEX TO ŚLOKAS
 
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463
 
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415
 
265
 
194
 
12
 
345
 
सर्वत्र सर्वतः सर्व.
 
सर्वदा स्थापनं बुद्धेः
 
सर्वप्रकारप्रमिति
 
सर्ववेदान्त
 
सर्वव्यापृतिकरणं
 
सर्वात्मकोऽहं सर्वोऽहं
सर्वात्मना दृश्यमिदं
 
सर्वात्मना बन्ध
 
सर्वाधारं सर्ववस्तु
 
सर्वे येनानुभूयन्ते
 
सर्वेषु भूतेष्वहमेव
सर्वोपा घिविनिर्मुक्तं
सर्वोऽपि बाह्यः संसार
 
सहनं सर्वदुःखानां
साधनान्यत्र चत्वारि
 
साधुभिः पूज्यमानेऽस्मिन्
 
सर्वात्मसिद्धये भिक्षोः
 
सुखाद्यनुभवो यावत्
सुषुप्तिकाले मनसि .
 
स्थितप्रज्ञो यतिरयं
 
स्थूलस्य सम्भवजरा
 
स्थूलादिभावा मयि
 
स्थूला दिसम्बन्धवतो
 
स्रोतसा नीयते दारु
 
स्वप्नेऽयंशून्ये सृजति
स्वप्नो भवत्यस्य
 
231
 
316
 
26
 
121
 
1
 
100
 
516
 
293
 
339
 
513.
 
214
 
495
 
412
 
90
 
24
 
18
 
440
 
341
 
.446
 
171
 
426
 
91
 
497
 
546
 
550
 
170
 
98
 
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