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प्रशान्तचित्ताय
 
फलव्याप्यत्वमेवास्य
 
बुद्धाद्वैतसंतत्र्वस्य
बुद्धितत्स्थचिदाभासौ
 
ब्रह्मवित्वं तथा
 
ब्रह्मविब्रह्मैव भवति
 
भिद्यते हृदयग्रन्थिः
 
मनसेवानुद्रष्टव्यं
 
यः सर्वज्ञः सर्ववित्
 
उदाहरणस्थानसूची
 
यथा दीपो निवातस्थो
 
यथा सोम्यैक्रेन मृत्पिण्डेन
 
यन्मनसा न मनुते
 
लये संबोधयेच्चित्तं
 
विक्षेपशक्तिर्लिंङ्गादि
 
विमुक्तश्च विमुच्यते
 
वैशेष्यात्तद्वादस्तद्वादः
 
शान्तो दान्तः
 
शिवमद्वैतं चतुर्थ
 
संसर्गोवा विशिष्टो वा
 
उपदेशसाहस्री, पार्थि
 
वप्रकरणम्
 
पञ्चदशी
 
नैष्कर्म्यसिद्धिः
 
पञ्चदशी
 
उपदेशसाहस्त्री, प्रकाश-
प्रकरणम्
 

 
मुण्डकोप •
मुण्डकोप
बृहदारण्यको
 
मुण्डकोप ०
 
भगवद्गीता
 
छान्दोग्योप०
 
केनोप ०
 

 
O
 
गौडपादकारिका,
 
अद्वैतप्रकरणम्
 
वाक्यसुधा
 
कठोप०
 

 
ब्रह्मसूत्रम्
 
बृहदारण्यको ०
 

 
माण्डूक्योप●
 
वाक्यवृत्तिः
 
११५
 
७२.
 
७. ९०, ९२
४. ६२.
 
७. ९१.
 
१३.
 
३. २. ९.
 
२. २. ९.
 
४. ४. १९.
 
१. १. ९.
 
६. १९.
 
६, १. ४.
 
१. ६.
 
४४.
 
१६.
 
२. ४. २२.
 
४. ४. २३.
 
७.
 
३८.