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एतस्मादात्मन आकाश:
 
एष सर्वेश्वरः
 
ऐतदात्म्यमिदं सर्व
 
कर्मणा पितृलोको
 
घनच्छन्नदृष्टिर्घन
 
जागरितस्थानो बहिः प्रज्ञः
 
तत्त्वमसि
 
तपसा कल्मषं हन्ति
 
तमेतमात्मानं वेदानुवचनेन
 
तरति शोकमात्मवित्
 
तस्मै स विद्वानुपसन्नाय
 
ते ह प्राणाः प्रजापतिं
 
दृशिस्वरूपं
 
देवात्मशक्तिं स्वगुणैः
द्विधा विधाय चैकैकं
 
न तस्य प्राणा उत्क्रामन्ति
नास्वादयेद्रसं तत्र
 
प्रज्ञानघन एवानन्दमयः
 
प्रविविक्तभुक्तैजम:
 
वेदान्तसार:
 
तैत्तिरीयोप ०
 
माण्डूक्योप •
 
छान्दोग्यो ०
 
बृहदारण्यको●
 
हस्तामलकीयम्
 
माण्डूक्योप●
 
छान्दोग्योप •
 
मनुस्मृतिः
 
बृहदारण्यको ०
 

 
छान्दोग्योप
 
मुण्डकोप
 
छान्दोग्योप ०
 

 
उपदेशसाहस्री, दृशि-
स्वरूपपरमार्थदर्शनप्रक-
२. १. १.
 
तप्रकरणम्
 
माण्डूक्योप ०
 
माण्डूक्योप●
 
६. ८. ७.
 
१. ५. १६.
 
३.
 
६. ८. ७.
 
१२. १०४.
 
४. ४. २२.
 
७. १. ३.
 
१. २. १३.
 
५. १. ७.
 
रणम्
श्वेताश्वतरो०
 
पञ्चदशी
 
बृहदारण्यको
गौडपादकारिका, अद्वै-
१.
 
१. ३.
 
१. २७.
 
४. ४. ६.
 
४.