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बह्वी: कोटीरटीकः
 

 
भक्त्युद्रेकावगाढ-
भूत्वा क्षेत्रे विशुद्धे
 
भूमावागत्य
 

 
मध्वाख्यं मन्त्रसिद्धं
 
मातर्फे मातरिश्वन्
 
मूर्द्धन्येषोऽअलिमें
 

 
यस्तूदास्ते स आस्ते
 
यः सन्धत्ते विरिञ्चि
 
याभ्यां शुश्रूषुरासी:
 
यावत् प्रत्यक्षभूतं
 
युष्माभिः प्रार्थितः
 
येन भ्रूविभ्रमस्ते
 
येनाsजौ रावणारि-
येऽमुं भावं भजन्ते
 
योऽसौ व्यासाभिधान-

 
वन्दे तं त्वा सुपूर्ण-
वन्दे मन्दाकिनी-
वन्देऽहं तं हनूमानिति
 
२८/१
 
२/२
 
३९/१
 
३८/२
 
४/२
 
१४/१
 
१२/२
 
१५/२
 
२६/१
 
२३/२
 
३६/२
 
८/२
 
२०/२
 
४०/२
 
१७/१
 
वाग्देवी सा सुविद्या -
 
वाचां यत्र प्रणेत्री
 
विष्णोरत्युत्तमत्वा-
वीर्योद्धार्यां गदाग्र्या-
वृन्दैरावन्य-
बैकुण्ठे कण्ठलग्न-
व्याख्यामुत्खातदुःखां
 

 
शुश्रूषार्थं चकर्थ
श्रीमद्विष्णवधिनिष्ठा-
श्रीवत्साङ्काधिवासो-

 
संसारोत्तापनित्योप-
सन्द्रक्ष्ये सुन्दरं
 
सस्नेहानां सहस्वा-
सानुक्रोशैरजस्रं
 
साम्रोष्णाभीषुशुभ्र-
सुब्रह्मण्याख्यसूरे:
 
सेवन्ते मूर्तिमत्य:
 
स्वच्छः स्वच्छन्दमुत्युः
 
स्वस्वस्थानस्थिताति-
क्ष
 
क्षिप्तः पश्चात् सलीलं
 
क्षुत्क्षमान् रूक्षरक्षो-
क्ष्वेलाक्षीणाट्टहासं
 
८३
 
२५/२
 
१/२
 
१५/१
 
५/२
 
१०/२
 
३४/२
 
२४/२
 
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६/२
 
६/१
 
३३ / २
 
१७/२
 
३६/१
 
८/१
 
४१/१
 
३२/२
 
१९/१
 
१३/१
 
२४/१
 
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