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आक्षिपसि सर्वजगतां रथरूपतया व ते स्थिता लोके ।
त्वष्टाः पश्यादिति यदि पौराणिकान पृच्छ ॥२७॥
अथ निखिलजगदाधारः सुमेरुरपि स्मरहरस्य
शरासनीभवितुमुचितमाकारमाकलयन्नतिजिह्मनिपतित-
ब्रह्मसदनमुपकण्ठगेलित वैकुण्ठभवनमनायासकम्पित-
शिवावास भुवनम् उद्भूयमानवरुणपुर स्मयमानपवमान-
नगर (भ्रा)न्तदेवासुरमुत्पन्न) भययक्षराक्षसमुत्कम्पित
हृदय किंपुरुषमुत्सन्नधृति पन्नगमाकुलश्रमदप्सरःकुल-
मातलोद्वान्तसरोजलमजस्स्रस्तुत निराधार निर्झरधार -
मतवलम्बमृगकदम्ब मन्तरिक्षचलित पक्षिपतन भीत-
शबरयूथहढावलम्बिततिरचीन वनराजि चे मध्यभाग-
लग्ना मेदिनी छ गतेति पश्यन्निव मत्तोऽपि महीरथोडम-
8
 
1. A. नयति 702 अति
 
है A omits गलित
 
6.M- आगलोद्वान्त
7. T- स्तुत
 
8. M, Tamit च
 
9. A लता for लग्ना
 
O
 
3. Thas gapin the place of भ्रा
 
0
 
4. T उत्पत
5. A. M - प्रति
 
धृति
 
* A. M - omit from. शिवावास to उत्कम्पित
 
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