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आक्षिपसि सर्वजगतां रथरूपतया क्वते स्थिता लोके

त्वष्टाःदृष्टा: पश्याचादिति यदि पौराणिकान् पृच्छ ॥२

अथ निखिलजगदाधारः सुमेरुरपि स्मरहरस्य

शरासनीभवितुमुचितमाकारमाकलयन्न[^1]तिजिह्मनिपतित-

ब्रह्मसदनमुपकण्ठगेलित [^2]वैकुण्ठभवनमनायासकम्पित-

शिवा[^*]वास भुवनम् उद्भूधूयमानवरुणपुरं स्मयमानपवमान-
नगर

नगर
(भ्रा)[^3]न्तदेवासुरमुत्प(न्न) [^4]भययक्षराक्षसमुत्कम्पित
[^*]
हृदय किंपुरुषमुत्सन्नधृति [^5]पन्नगमाकुलश्भ्रमदप्सरःकुल-

मात[^6]लोद्वान्तसरोजलमजस्स्रस्तुत [^7]निराधार निर्झरधार -
-
मतवलम्बमृगकदम्ब मन्तरिक्षचलित पक्षिपतन भीत-

शबरयूथदृढावलम्बिततिरचीन वनराजि चेच[^8] मध्यभाग-

लग्ना[^9] मेदिनी क्व गतेति पश्यन्निव मत्तोऽपि महीरथोडम-
8
 
ऽयं-
 
 
[^
1. ]A. नयति 70- नयति for अति
[^
2 अति
 
है
]A omits गलित
 
6.M- आगलोद्वान्त
7.

[^3]
T- स्तुत
 
8. M, Tamit च
 
9. A लता for लग्ना
 
O
 
3. T
has gap in the place of भ्रा
 
0
 

[^
4. ]T- उत्पत

[^
5. ]A., M - प्रति
 
for धृति
 
* A.

[^6]
M -- आगलोद्वान्त॰
[^7]T- ॰स्तुत॰
[^8]M,T
omit
[^9]A- लता for लग्ना
[^*]A, M- omit
from. शिवावास to उत्कम्पित
 
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