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श्लोकः
 
मनसा सुरसमुदाय २३
मम पुनरपरा ३१
मुक्त्वा शम्भावयति ३१
मुक्त्वा हा १६
 
यं वा काळी १७
 
यै विविध १२
 
यत्र च लोलं ३९
 
यत्र न मन्दा ४०
 
यत्र सदानव ३६
 
यत्र हि सयोग ११
 
यत्समवेता १८
 
यदि वो माने ३३
यदि वायत्यन्तं २४
ययुधि नाना ३८
यद्वपुरोङ्कारो हि ५९
यद्वयमतसीदाम ५
यस्य च विलसन्नेत्र २३
 
यस्य च वेकुण्ठेषु १६
 
यस्य मरुद्वाज ४२
 
यस्य विलोकन १४
या वागेकर्तारं ३४
 
या इतसुर ४१
युगमवजानानं ४६
 
येऽखिलयोनिं ५२
 
येन च कालो २
 
येन रिपूष्णोदन्त २०
 
येम सशङ्कालस्य: १९
 
योऽवति गामपि १५
योगो भावी ३९
यो ज्यायानेषु ४४
यो भासा ५
 
यो भुवने
 
७.
 
पुटम् श्लोकः
 
100
 
70 लक्ष्मीवांस ६४
106 वपुरति १
 
60 वरमादाय ३४
विकसित २
 
16
 
58
 
विपिनं ६०
 
32
 
32
 
29
 
58
 
16
 
72
 
65
 
31
 
121
 
15
 
112
 
14
 
72
 
112
 
रणभूमिषु चापादि ५२
 
55. शूराः २७
 
18
 
79
 
83
 
37
 
15
 
JIO
 
विप्रततावध्याय १९
 
विरहिभिराशा ६५
 
वृत्तौ राजस्यां २८
 
वेदांश्च के १७
 
व्रतममलं १३
 
शक्तिरकम्प्रा १८
 
शत्रुषु दाहं ४९
 
शिखिनिकरोपम! ५१
 
35
 
6
 
50
 
शुभकर्मा ना ५०
 
श्राव्या २६,
 
श्वान: ५५
 
सच हन्तेह ३३
 
सज्ञानी १८
 
सत्फलकैरासि ५२
 
4
 
18 स हि तपनानल ५८
 
सा जनता ६●
 
साधूनां ७
 
सावयवत्वादेव ५५
 
सुचिरमिहासा ४४
 
सोऽपि बली ३६
 
स्त्रीघटयामा ६९
 
सत्वरगत्या २५
 
सत्सु शरास १३
 
समजनि २७
 
स विधातेत्यर्थनतः ३०
 
१२७
 
पुटम्
 
117
 
47
 
I
 
28
 
53
 
122
 
62
 
48
 
23
 
96
 
14
 
61
 
116
 
117
 
81
 
22
 
67
 
41
 
27
 
97
 
40
 
21
 
95
 
104
 
25
 
121
 
45
 
85
 
113
 
109
 
50