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२३८
 
Stanza
 
( समधुरं मधुरैरपि )
समय एवं करोति
समारम्भा भग्नाः कति
समाश्लिष्यत्युच्चैर्वन
 
सरसा सुपदन्यासा
सर्पदर्जनयोर्मध्ये
 
सर्पः करः खलः करः
सर्पाः पिबन्ति पवनं
सर्व प्रेप्सति यत्सुखा-
सर्वशक्तिमयो ह्यात्मा
 
सर्वे लतान्तास्तरुमा-
सर्वे वयमिह स्वप्न-
सहकारकुसुमकेसर-
सहवर्धितयोर्नास्ति
सा गोष्ठी सुहृदां निवा-
साधुरेवार्थिभियीच्यः
सानन्दं सदनं सुता
सा बाला वयमप्रग-
सारं सारभरङ्गतरुण-
( सा रम्या नगरी )
सा रोगिणी यदि भवेद-
सा हानिस्तन्महच्छिद्रं
साहित्यसंगीतकला-
सिंह: शिशुरपि निप
सिंहो बली द्विरदशूकर-
सिद्धाध्यासितकन्दरे
( सिलमलमशनाय )
सीत्कारं कारयति
सुखोपायमशक्यं च
सुगन्धं वनिता वस्त्र
सुजनं कुजनं मन्ये
सुजनो न याति वैरं
 
सुतारा विक्रीता स्व-
सुधामयोऽपि क्षयरोग-
सुधाशुभ्रं धाम स्फुरद
सुप्ता न्येन सहान्येऽयं
सुवर्णपुष्पितां पृथ्वी
सुवृत्तस्यैकरूपस्य
सुहास्य मुखपङ्कजे
सूनुः सञ्चरितः सठी
 
सृजति तावदशेष-
सेवतेऽवसरप्राप्ता-
स्तनशैलसंनिधाने
 
स्तनौ मांसग्रन्थी कनक-
स्तम्भः स्वेदोऽथ रोमाञ्चः
 
( स्त्रीणां स्तनौ यदि धनौ)
 
स्त्री मुद्रां झषकेतनस्य
 
भतृहारसुभाषितसग्रहस्य
 
No.
 
७८०
 
७८१
 
७८२
 
७८३
 
७८४
 
७८५
 
७८६
 
७८७
 
७८८
 
७८९
 
७९०
 
३४०
 
७९१
 
२८
 
७९२
 
७९३
 
८५१
 
७९४
 
१६९
 

 
७९५
 
७९६
 
७५
 
७९७
 
३४१
 
१६१
 
७९८
 
२१
 
७९९
 
८००
 
८०१
 
८०२
 
८०३
 
१३४
 
१९
 
८०४
 
८०५
 
८०६
 
८०७
 
३४२
 
२०
 
८०८
 
१५९
 
८०९
 
१३६
 
११३
 
Page
 
Stanza
 
स्थगयति तमः शशाङ्कं
 
१९७ । स्थाल्यां वैडूर्यमय्यां
( स्थितं किंचिद्वक्ते )
 
१९७
 
१९७ स्थिति: पुण्येऽरण्ये सह
 
१९७ स्नात्वा गा: पयोभिः
 
१९७ । स्पृहयति भुजयोरंतर-
१९८ स्फुरत्स्फारज्योत्स्ना
स्मितं किंचिद्वक्तं सर
१९८ । स्मितेन भावेन च ल-
१९८
 
१९८
 
स्मृता भवति तापाय
 
१९८ । स्रजो हृद्यामोदा
१९८ स्वगृहे पूजितो मूर्खो
 
१३२
 
म्वचित्तपरचिन्तयैव
 
१९८
 
२१५
 
१९८
 
१९८
 
२०५
 
१९९
 
( स्वजनबन्धुजनेष्व )
 
स्वदत्ता पुत्रिका धात्री
 
स्वपरमतारकोऽसौ
 
( स्वप्नस्ना युवसा-)
 
स्वयं गुणपरित्यागाद्
 
स्वयं देहः स उद्धारस्
 
स्वयं भोक्ता दाता वसु
 
२१२
 
स्वयं हि पच्यते पार्क
 
१९९
 
१९९ । ( स्वयममृतनिधानं )
३० स्वल्पस्नायुवसाव
१९९ ( स्वर्गद्वारकपाटपाट )
 
१३३ । स्वादिष्टं मधुनो घृता
६३ । स्वाधीने निकटस्थिते
 
१९९ स्वाधीनेऽपि कलत्रे
 
२०७ । स्वान्तव्यनि निरस्त -
 
१९९ स्वायत्तमेकान्त हितं
 
१९९
 
२०० हंहो पान्थ किमाकुल
 
२०० हत्वा नृपं पतिमवेक्ष्य
 
२०० हरति वपुषः कान्ति
५२ । हरिद्रा गोरसं चूर्ण
२०७ हरेललावराहस्य
 
२०० हर्तुर्याति न गोचरं
 
२०० । हस्ते कृता सुरूपा च
 
२०० हासोऽस्थिसंदर्शनमक्षि-
२०० हिंसा शून्यमयल
 
१३३ हिक्काकासभगंदरोदर-
२०७ । हितमिममुपदेशं
 
२०१
 
हित्वा विश्वाद्यवस्था:
 
६२ । हे कोकिल कुरु मौन
 
हे पुत्रा व्रजताभयं
 
२०१
 
५३ हेमन्ते दधिदुग्धसर्पि-
४५ हेमाम्भोरुहपत्तने
 
No.
 
८१०
 
३४३
 
९३
 
३४४
 
३४५
 
३४६
 
३४७
 
९३
 
७९
 
३४८
 
३४९
 
८११
 
८१२
 
६१
 
८१३
 
१२०
 
३५०
 
८१४
 
७७
 
८१५
 
२०९
 
३५०
 
१५४
 
३५१
 
४६
 
८१६
 
५३
 
६८
 
८१७
 
८१८
 
५९
 
८१९
 
८२०
 
१५
 
૪૨
 
८२१
 
३५२
 
८०
 
८३
 
८८
 
८२२
 
१०१
 
१४४
 
८२३
 
Page
 
२०१
 
१३४
 
३७
 
१३४
 
१३४
 
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३७
 
३१
 
१३६
 
१३६
 
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२०१
 
२५
 
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819
 
१३६
 
२०१
 
२१०
 
२१२
 
२०१
 
८३
 
१३६
 
६१
 
१३७
 
२१७
 
२०१
 
२१८
 
२७
 
२०१
 
२०२
 
२१९
 
२०२
 
२०२
 

 
૨૦૮
 
२०२
 
१३७
 
૨૨૨
 
२११
 
२२३
 
२०२
 
२२५
 
५६
 
२०२