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Stanza
 
ददति तावदमी विषयाः
 
ददलु ददतु गालीर्गा-
दद्यात्साधुर्यदि निज-
दन्तैरुच्चलितं धिया
( दयित: प्रणयवतीनां )
(दष्टं प्रायो विकल)
दाक्षिण्यं स्वजने दया
दातव्यं भोक्तव्यं
दातव्यं मुखताम्बूल-
दातारो यदि कल्प-
दानं भोगो नाशस्ति-
( दानेन पाणिर्न तु )
दारिद्र्याद् हियमेति
दिक्क लायनवच्छिन्ना-
दिग्गजकमठकुलांचं
दिश वनहरिणीभ्यो
दीना दीनमुखेः सदैव
दुर पूरेण का मेन
दुराराध्य स्वामी
दुग्रह्यं हृदयं यथैव
 

 
दुर्जनवदन विनिर्गत
दुर्जनः परिहर्तव्यों
( दुर्मचान्नृपतिविन)
दुःखं स्त्रीकुक्षिमध्ये
दूरादर्थं घटयति नवं
( दशा सर्वस्वे )
दृष्टप्रायं विकल
दृष्टा दृष्टिमधो ददाति
 
देवं चन्द्रकलाधरं
 
( देवेन प्रभुणा स्वयं )
 
देशकालानतिक्रान्तं
देशे देशे कलत्राणि
 
देह। यात्ममतानुसारि
 
देहीति वचनं श्रुत्वा
(दैवात्कन्दुकपातेन )
दैवेन प्रभुणा स्वयं
दोर्मध्यान्नृपतिर्विन-
द्रष्टव्येषु किमुत्तमं
धूतं मांसं सुरा वेश्या
द्विरष्टवर्पा योषित
द्वेष्य: स्यात्सूचिताभावे
द्वौ विौ विप्रमाि
 
बनतनय विपत्तिव्याधि
धन्या एते पुमांसो
धन्यानां गिरिकन्दरे
भन्यानां नवपूगपूरिन
 
No.
 
५२२
 
२५५
 
५२३
 
५२४
 
२७४
 
३५
 
७१
 
५२५
 
६४
 
५२६
 
५०
 
५४
 
५२७
 
२५६
 
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२५७
 
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२५८
 
२५९
 
२७
 
२३
 
५२९
 
२६०
 
३२५
 
३५
 
५३२
 
५३३
 
२६१
 
५३४
 
५३५
 
२७६
 
२६१
 
२३
 
१०७
 
५३६
 
५३७
 
२६
 
५३८
 
५३९
 
६२
 
१९६
 
५४०
 
लोकानुक्रमणिका ।
 
Page
 
१६१
 
१०० । धन्यास्तु ये भुवि
 
१६२ । ( धन्यास्ते गिरिकंद )
 
१६२ धन्यास्ते वीतरागा
 
१०७ धर्मः प्रज्वलितः तपः
 
२१६ धर्मार्थकाममोक्षाणां
२८ । धातस्तात तत्रैव
१६२ । धातस्तात विरुद्धोऽपि
 
२१० । धिक्किं जीवितमापदेक-
१६२ धिक्तस्य मन्दमनसः
 
२२
 
२३
 
Stanza
 
धन्यास्त एव चपला-
१६२ । धैर्य यस्य पिता
 
१०० । ध्यानव्यग्रं भवतु
 
१६३ ( ध्यानानां गिरिकन्दरे )
 
१०१
 
१०१
 
१६३
 
घिधिरतान्किमिनिर्वि-
। धीरध्वनिभिरलं ते
 
१०१
 
६० न कश्चिच्चण्डकोपाना
 
न कुर्यात्मापपुत्रीयं
 
न कुर्यादभिचारोग्र
 
न गयो मन्त्राणां न च
 
१२
 
१०
 
न चेत्तं सामथ्य
 
न जानीषे मूर्ख
 
न तादृकर्पूरे न च
 
न दुर्जनः सज्जनतामु
 
न देवे देवत्वं कपट-
न ध्यातं पदमीश्वरस्य
 
१६३
 
१०२
 
१९७
 
२१६ । न नटा न विटा न
 
१६३ । न नाकपृष्ठं न च
 
न निर्मिता केन च
 
१६३
 
१०२ । नमस्यामो देवान्ननु
 
२०९
 
१६३
 
२१६
 
न भवति भवति च
 
१६४ न भिक्षा दुष्प्रापा पथि-
न भोगहार्या न च
 
नम्रत्वेनोन्नमंतः पर
 
न परिहरति मृत्युः
 
१०८
 
१०२ । नरपतिहितकर्ता
 
१० नवमेऽधोमुख विद्याद्
 
४३ न विद्यया केवलया
 
१६४ । न विषममृतं कर्तुं
 
१६४
 
न वैराग्यात्परं भाग्यं
 
न संसारोत्पन्नं चरि-
२०७
 
१६४ न स कश्चिदुपायो
 
न सा सभा यत्र न
 
१६४ । न हि भवति यन्न भाव्यं
 
२२० नाकाले नानवसरे
 
७८ (नागं बालमृणाल )
 
१६४ । नागो भाति मदेन
 
No.
 
७८
 
५४१
 
१९६
 
.५४२.
 
५४३
 
५४४
 
५४५
 
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५४७
 
५४८
 
५४९
 
५५०
 
३६
 
१९६
 
६०
 
५५१
 
५५२
 
१२६
 
१६
 
५५३
 
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५५५
 
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१६५
 
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२२
 
३६
 
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२२
 
६७
 
५७०
 
२३१
 
Page
 
३१
 
१६४
 
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१६५
 
१६५
 
१६५
 
१६५
 
१०२
 
१६६
 
१६६
 
१६६
 
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७८
 
२५
 
१६६
 
१६६
 
५०
 
२१३
 
२१३
 
१६६
 
१६७
 
१६७
 
६१
 
६५
 
१६७
 
१६७
 
१०
 
१६
 
१६७
 
१६७
 
१६७
 
१६८
 
१६८
 
१६८
 
१६८
 
१६८
 
१६८
 
१०३
 
१६८
 
१६८
 
१६९
 
२०७
 
२७
 
१६९