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२३०
 
Stanza
 
ग्राझं नाम न चान्य
 
ग्राह्यं नाम विषक्षस्य
 
चक्रं सेव्यं नृपः सेन्यो
चक्षुः संवृणु वक्र
चण्टाल: किमयं द्विजा
 
चत्वारो धनदायादा
 
चन्द्रः शोभति निर्मले
 
चपलतरतर मै दूरमुत्सा
चर्मखण्डं द्विधा भिन्नं
चलन्ति मेरुप्रमुखा
चला लक्ष्मीश्वलाः प्रा-
( चाण्डाल : किमयं )
चिदेव ध्यातव्या संतत
चिद्रत्नमत्र पतितं
चिन्तायाश्च चिना-
चिन्तितं यदनेनासीद्
 
चीराणि किं पथि न
 
चुम्बन्तो गण्डभित्तीर्
चूडोत्तं सितचारुचन्द्र-
चेतश्चिन्तय मा रमां
चेतः प्रेतसमं समं-
चेतोहरा युवतयः
चेष्टा भवति पुंनार्यो
 
छिन्नोऽपि रोहति तरुः
 
जगाम व्यर्थ मे बहु
जङ्घान्तराले विमले
जनयति सुतं कंचि-
( जनावर्ती कल्ये )
जयन्ति ते सुकृतिनो
जलमध्ये दीयते दानं
जल्पन्ति सार्धमन्येन
जवो हि सप्तेः परमं
जाड्यं धियो हरति
 
जाड्यं ह्रीमति गण्यते
 
जातस्त्वं भुवनाधिपो
 
जातः कूर्मः स एकः
 
जातियतु रसातलं
जात्यन्धाय च दुर्मु
जानकीवदनोल्लास-
जानन्नेव करोति
 
जिह्वा तृप्यति चुंबना
 
जीर्णा एव मनोरथाः
 
( जीर्णा कन्था ततः किं )
जीर्यन्ति जीर्थतः केशा
ज्ञानं सतां मानम-
भर्तृहरिसुभाषितसभहस्य
 
No.
 
२५
 
३६
 
४८८
 
४८९
 
२४३
 
४९०
 
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४९५
 
२४३
 
५५
 
४९६
 
४१
 
४९७
 
२४४
 
५.
 
२४५
 
४९८
 
४९९
 
५००
 
२४६
 
२१
 
८४४
 
६१
 
२०४
 
५५
 
८३१
 
२४७
 
५०१
 
४२
 
५०२
 
२४८
 
२५
 
१०९
 
८४
 
৩৩
 
५०३
 
२४९
 
२८८
 
५०४
 
२५०
 
Page
 
Stanza
 
२०७ शानात्सर्वपदार्थानां
 
२०८
 
१५७
 
१५७
 
९५
 
१५७
 
१५७
 
१५७
 
१५८
 
१५८
 
१५८
 
९५
 
२१४
 
२१९
 
१५८
 
२०८
 
१५८
 
९६
 
( ज्यादीर्घेण चलेन )
 
( ज्वलन्त सार्धमन्येन )
 
ततो विधुद्वलीविल-
तत्पाण्डित्यं न पतति
 
(तत्त्वज्ञान विवेकिनो)
 
(तदन्तच्छन्ना भू )
 
तदेवार्थयते येन
 
१५९
 
१८
 
१०
 
तन्वीकटाक्षशरसंधित-
तपन्तु तामै: प्रपतन्तु
 
तपस्यन्तः सन्तः किम
 
तथा कवितया किंवा
 
तरुणि संचर संवर्
 
तरुणीवेपा दीपित
 
तस्मादनन्तमजरं
 
तस्यानिरेजे नवनीरजा
 
तस्याः स्तनौ यदि
तानीन्द्रियाणि सकला
 
ताम्बूलं मदिरा माय
 
९६
 
१५८
 
१५८ तावदेव कृतिनामपि
 
१५८
 
तावत्सत्यगुणालयः
तावत्स्नानमुरार्चनादि
 
तावदेवामृतमयी
 
९७९ तावन्महत्त्वं पाण्डित्यं
 
तितावदयं कोऽपि
 
२१४
 
तीर्णे जीर्ण कुटीरं
२०४ तीर्थानामवलोकने
 
२१९ तीर्थावस्थानजन्यं
 
८२ । तु वेश्म सुताः सता-
२३
 
तुल्यार्थेन त्वमेक्यं
 
२०३
 
तृषार्ते: सारनैः प्रति-
९७
 
तृषा शुष्यत्यास्ये
 
तृष्णां छिन्धि भज क्ष-
( तृष्णा न जीर्णा वय-)
 
ते धन्या भुवने सुशि
 
१५९ ( ते धन्या ये विरागा)
 
९७ । तोयैरल्पैरपि करुणया
 
११
 
त्यत्तवा सङ्गमपारपर्वत
 
४३
 
२११
 
२२२ । विविधस्तु मतः कामी
 
१५९
 
त्रैलोक्यं मधुसूदनस्य
 
९८ । त्रैलोक्याधिपतित्वमेव
 
त्यत्तवा स मां कथं
 
त्यज दुर्जनसंसर्ग
 
११३ । त्वं राजा वयमप्युपा-
१५९ । त्वत्साक्षिकं सकल-
९८ त्वमेव चातकाधारो
 
No.
 
५०५
 
१२९
 
२४७
 
१३७
 
५०६
 
२८३
 
२१९
 
८१
 
५०७
 
५०८
 
१७२
 
५०९
 
५१०
 
१४१
 
१८८
 
५११
 
१३६
 
५१२
 
६७
 
५५३
 
५१४
 
७७
 
१२५
 
२५१
 
३८
 
५१५:
 
७०
 
६४
 
२५२
 
८६
 
५१६
 
२५३
 
१५५
 
१००
 
५४२
 
५१७
 
५१८
 
३९
 
५१९
 
५२
 
५२०
 
२५४
 
१६३
 

 
५२१
 
Page
 
१५०
 
५१
 
९७
 
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१५९
 
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१५९
 
१५९
 
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१६०
 
१६०
 
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५३
 
१६०
 
२१०
 
१६०
 
१६०
 
३१
 
४९
 
९८
 
२०८
 
१६०
 
२२१
 
२२०
 
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२२३
 
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९९
 
१९
 
६१
 
२२५
 
१६४
 
१६१
 
१६१
 
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०९९
 
६४
 
२१२
 
१६१