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Stanza
 
किं गतेन यदि सा न
 
किंचिदन्तर्हिते भानौ
किं तेन हेमगिरिणा
 
( किं दाराः कन्दराभ्यः )
 
किं बाले तव सुव्रणो
 
किं यामि विक्रमपुरं
 
( किं वासाः कन्दरेभ्य: )
किं वेदैः स्मृतिभिः
किं शाकानि न सन्ति
 
किं स्थानस्य निरीक्ष-
किमस्माकमनेनेति
किमिह बहुभिरुचैः
 
किती पञ्चसहस्री
 
कीर्तिस्ते धनिका
 
कुचशैलसंनिधाने
 
कुवैलागतभर्तारो
 
+
 
कुङ्कुमपककलङ्कितदेहा
 
कुट्टिनीनां पुरो देयो
 
कुट्टिन्या सह कर्तव्यः
 
कुतश्चित्संप्रदश्र्यैव
कुसुमस्तव कस्येव
 
कृत्वोंकारप्रदीप
 
"
 
)
 
कृमिळवितं लाला-
ऋश: काण: खञ्जः श्रवण-
कृशोऽपि धन्यः सुजनः
 
कृशोऽपि सिंहों न समो
कृष्ण: करोतु कल्याणं
केदारस्थानमेकं रु-
केयूरा न विभूषयन्ति
 
केशानाकुलयन्दृशौ
केशा: संयमिनः श्रुते-
केषांचिनिजवेश्मनि
कवर्तकर्कशकरग्रह-
को देवो भवनोदया-
को धमा भूतदया किं
 
को न याति वशं लोके
 
( कोपीनं शतखंड )
को लाभो गुणिसं-
कोशात्तदप्यधिष्ठानं
 
( कौपीनं वा ततः किं )
कौपीनं शतखंड-
(क्रिमिकुलचितं )
क्रियादौ वत्कामः
क्रीडां करिष्यति कि
क्वचित्सुभ्रभङ्गैः कचि
 
No.
 
२३३
 
४५३
 
४५४
 
४५१
 
४५५
 
४५६
 
१८४
 
१९१
 
४५७
 
કર્
 
८५
 
४५८
 
४५९
 
४६०
 
८२८
 
११७
 
८०
 
४३
 
१२३४
 
४६१
 
४४१
 
२०
 
४६२
 
४६३
 
४६४
 
५०
 
७६
 
१४५
 
१३९
 
४६५
 
४६६
 
७८
 
८२९
 
४६७
 
२३४
 
४६८
 
७९
 
२८८
 
२३४
 
३०
 
८४२
 
४६९
 
लोकानुक्रमणिका ।
 
Stanza
 
९२ क्वचिद्धंसश्रेणी मुख-
१५२ । कचिद्भूमौ शय्या क.
 
१५२
 
१५२
 
Page
 
१५२
 
१५२
 
कचिद्वीणानाद: क
 
व यातः कायानो द्विज
 
काहं ब्रह्मति विद्या
 
क्षणं वालो भूत्वा
 
क्षणं रटन्ती रुती
 
७३
 
७६ क्षान्तं न क्षमया
 
१५२ क्षान्तिश्चेत्कवचेन
 
२१८ क्षीणठकुरदत्तस्य
२०८ श्रीरेणात्मगतोदका
 
३३ । क्षुत्क्षामोऽपि जराकृ
 
१५३ क्षुद्राः सन्ति सहस्रशः
 
१५३ क्षोणीशाश्रयणां परो
 
१५३ श्रीगं बासो वनभुवि
 
२०३
 
४६ (खानविदारिता)
 
२११ । सद्योतो द्योतते तावत्
 
२०८ । खलोलापा: सोटाः कथ
 
२१० । खल्वाटो दिवसेश्वरस्य
 
१५
 
८०
 
गङ्गा गङ्गेति यस्याः
 
१५३ गङ्गातरङ्गकणशीकर-
तरङ्गनिर्धूत
 
गङ्गा पापं शशी तापं
गातीरे हिमगिरिशिला
गजभुजंगविहंगम-
२५०
 
१२
 
• १५३
 
१५३ गतं कर्णाम्यर्ण
 
१५३ । गतं नत्तारुण्यं तरुणि
 
२१८ गतं तत्तारुण्यं युवति
 
गतं न शोचामि कृतं
 
३०
५७ गत्वा वेश्यासु विश्वासं
 
गन्वाढ्यां नवमलकां
 
५४
१५३ गर्भस्थं जातमात्रं
 
१५३ । गर्भावासे शायित्वा
 
२२२ । गर्व
 
हते न
 
२०३ (तीरेहिमगिरि- )
 
१५४ गात्रं पात्रं प्रथम-
९२ गात्रं संकुचितं गति-
१५४ । गागरा च विकलश्च-
२११ गान्धवें गन्धसंयुक्तं
 
११३ गुणवदगुणवद्वा
 
९२ गुरुणा स्तनभारेण
 
१३ गुरुबन्धुसुहृद्वर्ग-
२०४ । गृहपद मिदं धर्मारण्यं
 
१५४ । ग्रामे ग्रामे कुटी शून्या
३५ ग्राह्यं ग्रहणक
 
No.
 
७३
 
२१
 
४११०
 
१७
 
९१
 
२३५
 
८३०
 
२३६
 
२३७
 
५९
 
२८
 
४७१
 
४७२
 
४७३
 
५८१
 
१५०
 
३९
 
६८
 
२३८
 
४७५
 
४७६
 
२४०
 
४७७
 
४७८
 
४७९
 
८४३
 
५७
 
४८०
 
४८१
 
२४१
 
४८२
 
२३९
 
४८३
 
२४२
 
४८४
 
४८५
 
४५
 
१३२
 
४५
 
४८६
 
४८७
 
७३
 
૨૨
 
Page
 
२२१
 

 
१५४
 
२१३
 
२२३
 
९२
 
२०३
 
९३
 
९३
 
२०९
 
१२
 
"
 
१५४
 
१५५
 
१७०
 
१५५
 
५९
 
१७
 
२२०
 
९४
 
१५५
 
१५५
 
९४
 
९४
 
१५५
 
१५५
 
१५६
 
२०४
 
२०९
 
१५६
 
१५६
 
९५
 
१५६
 
९४
 
१५६
 
9,4
 
१५६
 
१५७
 
२०
 
५२
 
२०८
 
१५७
 
१५७
 
२१०