2023-07-23 15:01:59 by jayusudindra
This page has been fully proofread once and needs a second look.
साधोः सङ्गमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः ॥ ७९३ ॥
सारं सारङ्गरङ्गत्तरुण
क्षोभं नीत्वा सलील सलिलमनुपिबेर्योषिता पीतशेषम्
धन्यस् त्वं यद् वनान्ते गमयसि समयं दारुणद्रव्यगर्
प्रध्मातोगीद्ग्रीवगृ
सा हानिस् तन् महच् छिद्रं सा चान्धजडसूकता
यन् मुहूर्
h
साहित्य
तृणं न खादन्नपि जीवमानस् तद् भागधेयं परमं पशूनाम् ॥ ७९६ ॥
सिंहो बली द्विरदशूकरमांसभोजी संवत्सरेण रतिमेति किलैकवारम् ।
पारावतः खरशिलाकणमात्रभोजी कामी भवत्यनुदिनं वद कोऽत्र हेतुः ॥७९७॥
सीत्कारं कारयति प्रणयत्यधरं तनोति रोमाञ्चम् ।
नागरिकः किं मि
सुगन्धं <flag></flag>निता व
शय्या च भूष
सुज
ख
स्वपरिभ्रमणेनैव परता
f..
साधूसंगति नित्यमेव च गृहे.
_d)
dig
SRB. p. 89 4 ; SRK. p. 95. 1 (Bh.).
794
Ujj711 )
B1S. 6998 (5224 ). Vrddhacāna. 12. 1;
extra12.
D V128; F12 V105 ; BORI328 V130; JHU271 V128; SVP 159 V
6) क्षौधं पीत्वा. ") दारु रूपगर्व ; GV82387 V113. ८) क्रोधं ( for
4) खरखलक्ष्माण्यवक्राण्यपश्यन् ; Pun2127 V129 - 4) खंडग्वाद्यैर्दुमाणां;
-
Meh V129; Bik3279 V13+ ( 30 ) ; Bik3278 V126; Bik3281 V125 (126).
क्षोभं).
795 ISM Kalamkar692 V68.
796 W and Pun2885 N12 ; NS3 N106. 1B1S. 7037 ( 3250) Bhartr..ed..
Bohl. extra2. lith ed. I. 2. 11, Il. 12. Galan 13 ; SRB. p. 40. 30; SRK. p. 35.9
( Bh. ) ; SK 2. 8; SSD. 2. f. 172b.
797 H1 V107 ; Ujj6414 V106. ८) ण कुरुते रतिमेकवारं. c) कणभोज
नोऽपि. BIS. 7044. Subhāsh. 76; Prabandhacintāmani 4. 183 ( p. 205.1888
ed.) ; SHV. App. If 2a 26; Ss. 45. 4.
Sp. 524 (Dharmadasa ) ; SRE. p. 186. 3; SRK. p. 1494
798 F4 Ś106.
(Kuvalayānanda); com, on Kuvalayānanda 30.
799 Bik3295 $113.
• 800 X N58; ASP1461 extra2.
BIS. 7091 (5257). Prasaigābh. 3; SRB.
p. 45. 18; SRK. p. 12. 6. ( Sp. ) ; ST. 1. 28 ; SL f. 56; SSD. 2. f. 95a All
anthologies व्यजनं ( for कुजनं ) ; orig. कूजनं ?