2023-07-23 09:12:30 by jayusudindra
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कान्तिः श्रीर्गमनं गजः परिमलस् ते पारिजात
वाणी कामदु
रे रे चारुरदे किमर्थममरै
वनभुवि तनुमात्रत्राण
तदिह सुकरतायामा
वना
१९०
स एव दीपनाशाय कुतः क्षीणेषु सौहृदम् ॥ ७२८ ॥
वनेऽपि सिंहा मृगमांसभक्षणाद् बुभुक्षिता
एवं कुलीना व्यसनाभिभूता न नीचसङ्गात् सुखमाद्रियन्ते ॥ ७२९ ॥
वयं दरिद्राः कुशलाश्च च पण्डिता न चापि मूर्खा मणिरत्नमण्डिताः ।
सचक्षुषः शुद्धपटाभिशोभिता नान्यत्र हीनाः कनकैरलंकृताः ॥ ७३० ॥
वयमनिपुणाः कर्णप्रान्ते निवेशयितुं मुखं
कृतकमधुरं भर्तुर्भावं न भावयितुं क्षमाः ।,
प्रियमपि वचो मिथ्या वक्तुं जनैर्न च शिक्षि
च
क इह सगुणो येन स्याम क्षितीवरवल्लभाः ॥ ७३१ ॥
वयमेव पुरा
इदानीमर्थसंबन्धाद यूयं यूयं वयं वय
वरं कार्
वरं क्
वरं प्राणत्यागो न च पिशुनवादेऽप्यभिरतिर्
वरं मिक्षाशित्वं न च परधनास्वादनसुखम् ॥ ७३३ ॥
726 BORI329 $100 (101 ) ; Pun2101 $101 ( 102 ) ; BORI Limaye2738116.
BIS. 5897 -ubhash 17; SLP. 1.6.
727 X2 extra7.
Campūrāmāyana II. 25.
728 X: extra8.
III. 56. ed. Bomb 57
BIS. 5927 (2716). Cana. 99, in Weber. Pañic. ed. Koseg.
Vikramaca 154. Subhash 228, 273 Carr. 487; Sp. 488;
SRB. p. 155. 120; & BH. 2682; SRE. 176 9 ( Bhoja ) ; SRK. p. 223. 15
(Sphutasluka); SL. f. 424, 46&; SSD. 2. f. 90a; SSV. 405; JSV. 247, 1; 8KG.
f. 16a.
729 Bar3199N11.
BIS. 5931. Subhash. 66.
GVS 2387 V122.
730
Cf. SRB.p. 40. 36; SBH. 3440.
731
- SKM. 123.7; SDK 5.43 5( Bh. ) ; SRH. 124.17; SHV f 73 803.
;
732 C V69; D V69 ; I V55 ( 01 ). C 312.
SMV. 14 1; SLP.10.9.
733 Wa12 N36. BIS. 5981 (272) Hit. ed. Schl. I. 129. Jonhs. 144.
Padyasarhgraha 11 in Haeb and Kāvyas Kavyakal. 10. Vamanap. 66, in
ŚKDr. sub वर; SRB p. 177 985; SRK. p. 239 86 (Sphutasloka ) .