2023-07-22 12:06:17 by jayusudindra
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यला
यदि जलदनिनदमुदितास् त एव मूढा न नृत्येयुः ॥ ६६४ ॥
यथा स्रग्वी तूर्यैर्जन
प्रयातव्यस्थानं निपतति विषादे प्रतिपदम् ।
तथा हे भोगस्था दिवसदिवसे मृत्युनिकटं
व
व्रजन्तो मा यूयं भवत विभवैर्
यदभावि न तद्भावि भावि चेन् न तदन्यथा ।
इति चिन्ताविषघ्नोऽयमगदः किं न पीयते ॥ ६६६ ॥
यदासौ दुर्वारः प्रसरति मद
तदा तस्योद्दामप्रसरर
क्व तद् धैर्यालानं क्व च निजकुलाचारनिगडः
क्व सा लज्जारज्जुः क्व विनयकठोरङ्कुशमपि ॥ ६६७ ॥
यदि धनिनः सत्पुरुषा यदि च सुरूपाणि परकलत्राणि ।
अनुपचितसुकृतसंचय त
यदि सा प्रमदा ननु रम्यरता प्रमदा शुभदा सुखदा च सदा ।
यदि सा वनिता हृदये निहिता क्व जपः क्व तपः क्व समाधिविधिः ॥ ६६९ ॥
यदेते सा
न सावज्ञैरेषामपि च निजवित्तव्ययभयम्
न वा क्लेशोऽमुष्मिन्न
स्वमांसत्रस्तेभ्यः क इह हरिणेभ्यः परिभवः ॥ ६७० ॥
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664
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665 MIV VIII 4, 4 ) M: जनपतिवृतो. - ) M+ प्रायाद्वध्यस्थानं; Ms
6
प्रयासन्यस्थानं.
666 BORI329 N108 ( 103 ) ; Nag299 N118; Bik3279 N62; Bik3280 N71
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A
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670
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Cum
cad) संचयो न व हृदयं; Jod1 NI10;
SHV. f lb 13; SK. 6. 270; JSv.