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१७२
भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे
धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणं
यत् पूर्व विधिना ललाटलिखितं तन् मार्जितुं कः क्षमः ॥ ५९० ॥
पन्था खेदसिनो मुग्धे वक्रेणाधरपल्लवैः ।
खण्डिता एव शी[? शां ]तं ते शूराधरपयोधराः ॥ ५९१ ॥
परं स्वभाव एवैषो यत् परार्थविधित्सया ।
केशाननुभवन्त्येव स्वयं छायाद्रुमा इव ॥ ५९२ ।
परदारपरद्रव्यपरद्रोहपराजुखः ।
गङ्गा ब्रूते कदागत्य मामयं पावयिष्यति ॥ ५९३ ॥
परापवादवादेन रमते दुर्जनो जनः ।
फाकः सर्वरसान् भुङ्क्ते विनामेध्यं न तृप्यति ॥ ५९४ ॥
परिग्रहोऽतिदुःखाय यद्यत् प्रियतमं नृणाम् ।
अनन्तं सुखमानोति तद्विद्वान्यस्त[?] किंचन ॥ ५९५ ॥
परिचरितव्याः सन्तो यद्यपि कथयन्ति नैकमुपदेशम् ।
यास तेषां स्वैरकथास् ता एव भवन्ति शास्त्राणि ॥ ५९६ ॥
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षै प्रियवादिनम् ।
वर्जयेत् तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥ ५९७ ॥
परोऽपि हितवान्यन्धुर्वन्धुरप्यहितः परः ।
अहितो देहजो व्याधिर्हितमारण्य मौषधम् ॥ ५९८ ॥
p. 104 1 (ST). Canakyanttidarpana 12. 6; SHV. f. 63b. 651 VS. 848; SS. 46.
13; SL. f. 37; SSD. 4. f. 2 ; SLP. 11. 37 ; SKGf 1sb.
591 Bik3276S extra ( f. 8b marg. ).
593 X N160.
Birke
592 Srñ309 N75.
BIS, 3923 (1697 ). Subhash
46; com. on Candrāloka 5. 103; SA. 27. 48.
मागत्या माममुं पाव 1; SHV. f. 61a. 611; SM. f. 50b.
O
594 Wai2 extra6.
●
;
217; Sp. 667; SRB. p. 154,
१ ) पराङ्मुखम् । —) गङ्गापिपास
।
595 ISM. Kalamkar 195 V82 (85).
596 BN101. a) उपचरितव्याः
चरितव्याः; F2 N101.
° ) तेषां याः स्वैर; F1 N98. ") उपरि
a) उपचरितवन्तः; Es N87. – 4 ) नं सदुपदेशम् 1; BORI329
")
597 Wai2 extr4 13.
N92 (87 ); HU2144N88 ( 86 ) उप; HU2145 N106 ( 87 ) ; PU496 N88 ( 87 ) ;
Bik3280 N106 (104). BIS. 3956 ( 1714 ) Bhartr ed. Bohl. extra22. Haeb. 2,
108; Śp. 236 (Bh.); SS.29 11; SK. 2. 68; SU. 1436; PT. 1. 1 ; SSD. 2. f. 115b.
BIS. 3979 (1729 ). Cān. 18 in Haeb. 74 in Weber.
73 in Hoefer. Vrddhacã. 2. 5. Saṁskṛtapathop. 54. Subhash. 226. Hit. ed. Schl,
I. 71. Johns. 78. Galan Varr. 164. SKDr. under परोक्ष and मित्र; SRB. p. 88.1;
SRH. 89. 6 (p. 111, Kautilya); SRK. p. 54. 2 (Prṣsangaratnā vali); Garuḍa-
mahāpūrāņa 115 49 ; SSD. 2. f. 142b ; SKGf. 9a.
598 C N104 ( 5 ) ; BORI329 N132 ( 97 ) ; Bik3279 N43; Bik3280N62.
BIS 3988 (1736 ) Hit. ed. Schl, I. 98. Johns. 107 ; Kavitamytak. 96; SRB
p. 156. 152; SBH. 2706; SRH. 163 54 ( Mbh. ) ; SRK. p. 231. 8 ( Prasaigara
tnāvali ) ; 8A. 37.5; 8HV. f. 92b22; SK. 6. 198; SL. f. 46a; JBV. 98.1;
SKG, f. 6b.
भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे
धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणं
यत् पूर्व विधिना ललाटलिखितं तन् मार्जितुं कः क्षमः ॥ ५९० ॥
पन्था खेदसिनो मुग्धे वक्रेणाधरपल्लवैः ।
खण्डिता एव शी[? शां ]तं ते शूराधरपयोधराः ॥ ५९१ ॥
परं स्वभाव एवैषो यत् परार्थविधित्सया ।
केशाननुभवन्त्येव स्वयं छायाद्रुमा इव ॥ ५९२ ।
परदारपरद्रव्यपरद्रोहपराजुखः ।
गङ्गा ब्रूते कदागत्य मामयं पावयिष्यति ॥ ५९३ ॥
परापवादवादेन रमते दुर्जनो जनः ।
फाकः सर्वरसान् भुङ्क्ते विनामेध्यं न तृप्यति ॥ ५९४ ॥
परिग्रहोऽतिदुःखाय यद्यत् प्रियतमं नृणाम् ।
अनन्तं सुखमानोति तद्विद्वान्यस्त[?] किंचन ॥ ५९५ ॥
परिचरितव्याः सन्तो यद्यपि कथयन्ति नैकमुपदेशम् ।
यास तेषां स्वैरकथास् ता एव भवन्ति शास्त्राणि ॥ ५९६ ॥
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षै प्रियवादिनम् ।
वर्जयेत् तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥ ५९७ ॥
परोऽपि हितवान्यन्धुर्वन्धुरप्यहितः परः ।
अहितो देहजो व्याधिर्हितमारण्य मौषधम् ॥ ५९८ ॥
p. 104 1 (ST). Canakyanttidarpana 12. 6; SHV. f. 63b. 651 VS. 848; SS. 46.
13; SL. f. 37; SSD. 4. f. 2 ; SLP. 11. 37 ; SKGf 1sb.
591 Bik3276S extra ( f. 8b marg. ).
593 X N160.
Birke
592 Srñ309 N75.
BIS, 3923 (1697 ). Subhash
46; com. on Candrāloka 5. 103; SA. 27. 48.
मागत्या माममुं पाव 1; SHV. f. 61a. 611; SM. f. 50b.
O
594 Wai2 extra6.
●
;
217; Sp. 667; SRB. p. 154,
१ ) पराङ्मुखम् । —) गङ्गापिपास
।
595 ISM. Kalamkar 195 V82 (85).
596 BN101. a) उपचरितव्याः
चरितव्याः; F2 N101.
° ) तेषां याः स्वैर; F1 N98. ") उपरि
a) उपचरितवन्तः; Es N87. – 4 ) नं सदुपदेशम् 1; BORI329
")
597 Wai2 extr4 13.
N92 (87 ); HU2144N88 ( 86 ) उप; HU2145 N106 ( 87 ) ; PU496 N88 ( 87 ) ;
Bik3280 N106 (104). BIS. 3956 ( 1714 ) Bhartr ed. Bohl. extra22. Haeb. 2,
108; Śp. 236 (Bh.); SS.29 11; SK. 2. 68; SU. 1436; PT. 1. 1 ; SSD. 2. f. 115b.
BIS. 3979 (1729 ). Cān. 18 in Haeb. 74 in Weber.
73 in Hoefer. Vrddhacã. 2. 5. Saṁskṛtapathop. 54. Subhash. 226. Hit. ed. Schl,
I. 71. Johns. 78. Galan Varr. 164. SKDr. under परोक्ष and मित्र; SRB. p. 88.1;
SRH. 89. 6 (p. 111, Kautilya); SRK. p. 54. 2 (Prṣsangaratnā vali); Garuḍa-
mahāpūrāņa 115 49 ; SSD. 2. f. 142b ; SKGf. 9a.
598 C N104 ( 5 ) ; BORI329 N132 ( 97 ) ; Bik3279 N43; Bik3280N62.
BIS 3988 (1736 ) Hit. ed. Schl, I. 98. Johns. 107 ; Kavitamytak. 96; SRB
p. 156. 152; SBH. 2706; SRH. 163 54 ( Mbh. ) ; SRK. p. 231. 8 ( Prasaigara
tnāvali ) ; 8A. 37.5; 8HV. f. 92b22; SK. 6. 198; SL. f. 46a; JBV. 98.1;
SKG, f. 6b.