This page has been fully proofread once and needs a second look.

भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे
 
दद्यात् साधुर्यदि निजपदे दुर्जनाय प्रवेशं

तन्नाशाय प्रभवति ततो वाञ्छमानः क्रमेण ।

तस्माद् देयो विपुलमतिमिभिर्नावकाशोऽधमानां
 

जारोऽपि स्याद् गृहपतिरिति श्रूयते वाक्यतोत्र ॥ ५२३ ॥

 
दन्तैरुञ्च्चलितं घिधिया तरलितं पाण्यंघ्रिणा कम्पितं
 

[ दृग्भ्यां कुद्मलितं बलेन गलितं रूपश्रिया प्रोषितम् ।]

प्राप्तायां यमभूपते नृषु जराधाट्यापि यं सर्वतो
 

लोभः केवलमेष एव सुभटो हृत्पत्तनं वलगते ॥ ५२४ ॥

 
दातव्यं भोक्तव्यं सति विभवे संग्रहो न कर्तव्यः ।

पश्येह मधुकरीणां संचितमर्थ हरन्त्यन्ये ॥ ५२५ ॥

 
दातारो यदि कल्पशाखिभिरलं यद्यर्थिनः किं तृणैः :

सन्तश्चेदमृतेन किं यदि खलास् तत्कालकूटेन किम् ।

किं कर्पूरशलाकया यदि दृशोः पन्थानमेति प्रियः
 

संसारे हि सतीन्द्रजालमपरं यद्यस्ति तेनापि किम् ॥ ५२६ ॥

 
दारियाद् हिद्याद् ह्रियमेति हीह्रीपरिगतः सत्त्चात् परिभ्रयते
श्यते
निःसत्त्व: परिभूयते परिभवान् निर्वेदमापद्यते ।

निर्विष्ण्णः शुचमेति शोकनिहतो बुद्ध्या परित्यज्यते

निर्बुद्धिः क्षयमेत्यहो निधनता सर्वापदामास्पदम् ॥ ५२७ ॥
 
BIS. 2074 (1104). Pafñc.
 
523 Bik3280, Ben 60 - 10 and 57-4 N15.
ed. Koseg. I. 410. ed. Bomb. 366; SRE. p. 378,999.
 
524 BORI328 V151 (113). Om. b. SR.B. p. 77. 52; SRK. p. 68.21
(Prasaigaratnāvali ) ; Var. in both SRB and SRK for tat) प्राप्तायां यमभूपतेरिह
महाधाठ्यां धरायामियं, तृष्णा केवल मेकिकैव सुभटी धीरा पुरो नृत्यति ।; SS. 35. 1 (var.) ; SN.
333; SSV. 1092.
 
PAP
 
525 Bik3280 N80; 3279 N60. BIS. 2742 ( 1127 ) Pañc. ed. Koseg. II.
158. Vikramac. 73. Subhash 36 93. 166; Sp. 409 ; SRB. p. 69 17 ; SRK. p. 63.
3, p. 222. 6 ( Sphutaśloka);
 
526 BN70.
 
") कल्पशालिभि. a) संसारो हि मृगेन्द्रजालसदृशो; Ea N43
 
a
 
( 42 ) ; BORI326 N42. – ) कल्पशाखितरलं; RASB7747 N43 (42) ; Jod 1N43 ;
Pun2101 N43 ( 44 ) ; Pun697 N43; N$1 N43 ( 44 ).
 
BIS. 2746 ( 4170 ).
 
- 1) शातिश्चेदनलेन किं यदि सुहृहिन्यौषधैः किं फलम् । – ') प्रिया. - ) sपि (for हि.

Pañc. 1 in Nitisaink. 26. Cat. Cambr. Mss. 10. Subhāsh. 308; SRH. 181. 60
(Kāvyaprakāśa); Sarasvatikanthābharana ( KM 94, p. 443 ) 4. 71; ST. 1.62;
SSD f. 157a ( bacd); JSV. 301. 1 ;
 
527 BIS. 2781 (1145 ). Mrech. 8 [ 1 14] IIit ed. Sehl. I. 128. Johnso
143. ed Calc. 1830. p. 108; SRE. p. 68.71; SRK. p. 56-711 ( Bh. ) ; Alamkāra-
kaustubha (KM. 66, p. 360); Tantrākhyāyikā II. 67, Edgerton II. 40. both ffout *
( for दारिद्र्यात् in a ) ; SG. f, 36a; SM. 1303; SN. 512; SSV. 1287; SKG f. 16b.