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भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे
 
को न याति वशं लोके मुखपिण्डेन पूरितः ।

मृदङ्गो मुखलेपेन करोति मधुरध्वनिम् ॥ ४६७ ॥

 
को लाभो गुणिसंगमः किमसुखं प्राज्ञेतरैः संगमः
 

का हानि: समये च्युतिर्निपुणता का धर्मतत्वे रतिः ।

कः शूरो विजितेन्द्रियः प्रियतमा कानुव्रता किं धनं
 

विद्या किं सुखमप्रवासगमनं राज्यं किमाज्ञाफलम् ॥ ४६८ ॥

 
क्रीडां करिष्यति कियच्चिर मेकहंसः स्निग्धोल्लसत्कलखोऽपि शरीरवाचाम् ।

कालैरघट्टघटिकावलिपीयमानम् आयुर्जलं पिबति शोषमुपैति यत्र ॥ ४६९ ॥

 
क्वचिद्वीणानादः क्वचिदपि च हाहेति रुदितं

क्वचिद् विद्वद्गोष्ठी क्वचिदपि सुरामत्तकलहः ।

क्वचिद् रम्या रामा क्वचिदपि जराजर्जरंतनुर्
 

न जाने संसारः किममृतमयः किं विषमयः ॥ ४७०५॥

 
क्षुद्राः सन्ति सहस्रशः स्वभरणव्यापारमात्रोद्यताः

स्वार्थो यस्य परार्थ एव स पुमानेक: सतामग्रणीः ।

दुष्पूरोदरपूरणाय पिबति स्रोतःपतिं वाडवो
 

जीमृतस् तु निदाघसंभृतजगत्संतापविच्छित्तये ॥ ४७१ ॥
 
467
 
BIS. 1930 (748) Bhartr. ed. Bohl extra 20. Haeb. 2. 105; SH?pa
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SRB. p. 1801405; SRK. p. 239 84 ( BE }; SL. f. 30; SN. 841; SSD. 2. f. 157a;
े;
SMV. 11. 2.
 
469 D V142; BORI 328 V160 ( 51 ).
 
a ) करिष्यसि... एष (for एक ). -- )
कालारघट्ट. d) झटिति (for पिबति ); Bik 3279 V154 (50).
470 A V66 ; F3 V69 (acbd); 2) वीणावादः. ५) नारी (for रामा). दपि
च जराजीर्णवपुषः; Fs V102 -- 4 ) वाद्यं ( for नादः).
" ) वाद्यं ( for -नादः). – ) दपि च सुरा. - ) क्वचिद्रामा
रम्याः... गलत्कुष्ठवपुषो ( for जरा ) ; X Vös (cabd.). a ) वाणी (for - नादः). 8)
हतासानमतुलं ( for सुरा ).
for सुरा ). - ० ) गलत्कुष्ठरुधिरा ( for जरा ); BORI326 V98 ( 97 )
(acbd). a) वायं (for नादः). ") क्वचिद्रामा रम्या... वपुः ( for -तनु:); BORI 328
V114 (112); BORI329 V56; BU V107 ( 105 ) ; Wai2 V92 ; Jodh1 V77 ; Jod3
V37 (bead ) ; Pun2101 V55; Pun697 V66; GVS 2387 V121; HU 2144 V97
 
( 93 ) ; HU 2145 V106 (99 ) ; Meh V114; PU496 V103 ( 102 ) ; Bik 3279 V115
( 12 ) ; Bik 3280 V111 ( 12 ). BIS. 1989 (3991) Bhartr. in Schiefner and
Weber. p. 25. Subhash 28. 313; SRB. p. 89.5 (bacd ); SBH. 2941.
a) नुसं
गीतं (for वीणानाद: ); SRK. p. 99.5 ( bacd Bh. ) ; RKB. f. 39a ( Bh. var );
SMV. 8. 13 (bcad).
 
w
 
stred.dimbico
 
471 Nag 421 Tau 4911 and 4934, N12. N15 in Telang's Ms. D. BIS.
2032 (794 ) Vikramaca. 5. Sp. 773 ( Meghanyokti 9 ); SRB.p. 52. 257 (also p.
230.37 ) ; SBH. 285; SRK. p. 12 21 ( SIP. ) SA 27.15; Prabandhacintāmani
(ST.)
(Singhi ed.) 128; ST. 1. 33; SS. 24, 13; SK 2. 74, 6. 34; SSD. 2. f. 123&; JSV.
182 8; SKG f. 15b.