2023-07-21 06:20:41 by jayusudindra
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खट्वैका त्रुटिता विशीर्ण
वृत्तिः काय
मूढानां सुखलिप्सया ननु तथाप्यास्था गृहस्थाश्रमे ॥ ४४३ ॥
कपिकुलनखमुख
न पुनर्धनमदगर्वितभ्रूभृङ्ग
कलिलं चैकरात्रेण पञ्चरात्रेन [ ०ण] बु
पक्षैकेनाण्डकः सोऽथ मासपूर्णे शिरो कुरु ॥ ४४५ ॥
कल्पान्तपवना वान्तु यान्तु चैकत्वमर्णवाः ।
तपन्तु द्वादशादित्या नास्ति निर्मनसः क्षतिः ॥ ४४६ ॥
कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ ।
कश् चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥ ४४७ ॥
काचिन् मृगाक्षी प्रियविप्रयोगे गन्तुं निशापारमपारयन्ती ।
उद्गातुमादाय करेण वीणा
कार्कश्यं स्तनयोर्दृशी
कौटिल्
भीरुत्वं हृदये सदैव कथितं मायाप्रयोगः प्रिये
यासां दोषगणो गुणा मृगदृशां ताः स्युः पशूनां प्रियाः ॥ ४४९ ॥
कावेरीतीरभूमी
कर्णाटीचीनपीन
लोलल्लाटीललाटालकतिलकलतालास्यलीलाविलोलः
कष्टं भो दाक्षिणात्य प्रचलति पवनः पान्थ कान्ताकृतान्तः ॥४५०॥
443
BVB2 V103.
444 BVB2 (f 13a ) V extra on marg. Bik 3275 V11.
2 ) विकारिणी दृष्टि:
445 Meh. V145 cf Garbhopanisad 3.
446 ISM Gore 144 V175. Sp. 4223.
448 M 3. 5 Ś11-2.
BK. 3. 381; SL f 11&; BPS f 30a 191.
S
447 Nag299N119.
Sp. 519; SRB. p. 185. 31 ; SRK. p. 147; 6 (Śp.) ;
6) भोजने न वरम्.
449 Es V65 ( interpolation ? ). BIS. 1670 (647) Pañc. ed. Koseg. I.
r
205. ed orn. 153 ed. Bomb 190; SRB. p. 350.78.
B
450 E2 Ś112 ( extra).
Sp. 3811 ( Raksasapandita ) ; SRB. p. 335.136;
SU. 811 (Akbari-Kalidāsa ) ; Padyavepi 607; SG. f. 73b; BPS f. 25a 156.