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संकीर्णश्लोकाः ।
 
उद्यानेषु विचित्रभोजन विधिस् तीव्रातितीव्रं तपः
 

कौपीनावरणं सुवस्त्रममितं भिक्षाटनं मण्डनम् ।

आसन्नं मरणं च मङ्गलसमं सत्यं समुत्पद्यते
 

तां काशीं परिहृत्य हन्त विबुधैरन्यत्र किं स्थीयते ॥ ४३० ॥

 
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये ।

पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् ॥ ४३१ ॥

 
उरो मासद्वये जाते त्रिभिर्मासैस् तथोदरम् ।

चतुर्मासैर्नितम्बं च हस्तपादाविव स्थितः ॥ ४३३ ॥

 
एक एव खगो मानी चिरं जीवतु चातकः ।

पिपासितो वा म्रियते याचते वा पुरंदरम् ॥ ४३३ ॥

 
एक एव सतां दोपोषो द्वितीयो नोपपद्यते ।
 

यदेनं क्षमया युक्तमशक्तं मन्यते जनः ॥ ४३४ ॥

 
एकान्तशीलस्य दृढव्रतस्य पञ्चेन्द्रियप्रीतिनिवर्तकस्य ।

अध्यात्मचिन्तागतमानसस्य मोक्षो ध्रुवं तस्य सहंसकस्य ॥ ४३५ ॥

 
एतस्मात् कथमिन्द्रजालमपरं स्त्रीगर्भवासोऽस्थिरं
 

रेतः श्वे[श्यो ?]तति मस्त मस्तकपदा विर्भूतनानाङ्कुरम् ।

पर्यायेण शिशुत्वयौवनजरावेपैषैरशेपैषैर्वृ
 
तं
पश्यत्यत्ति शृणोति जिघ्रति मुहुर्निद्राति जागतिंर्ति च ॥ ४३६ ॥
 
१६
 
A
 
430 E V98; F4 V105 ( 104 ); GNS 2387 V90; BORI 331 V123; BORI
381/1884-87 V90 Meh and 13ik 3278 102; Bik3279 V109 (6) ; Bik3280
V105 (106 ); Bik 3281 V101 (102) ; VSP V103; Harilal's lith. ed. V88. BIS.
1253 (3791); Bhartr. lith, ed. II. 3. 88.
 
431 Wai2 extra 8.
 
a
 
Dfs. 1287 ( 489 ). Pufic. I. 434. Hit. III. 4 ( clab).
Galan Varr. 142 ( cdab ). Can, 73 in Weber. Subhash 151; Śp. 418 ( Cānakya);
SRB. p. 39.4 ( Cāņakya ) ; SA 27.46. " ) उपकारोऽपि नीचानां; SU. 1532; PT. 8.
26; SSD. 2. f. 131b; SSV 683; SMV. 23.21; JSV 209.6. 432 Mch V146.
433 A N10. BIS, 1340 (514 ). Cat 8 in Haeb. p. 239 6 in Ewald
Z, f, d. K. d. M. IV. 375. Subhāsh 298; Sp. 852; SBH. 674; SRB p. 226 148;
SRK. p. 189. 2 (Śp.); SDK, 4, 66, 3 ( p. 273 ) ; SRH 102.6 (Paiñcatantra);
ST. 6. 2; VS, 86; SK. 3, 147 ; SU. 1183; PT, 10. 43; PMT. 223; SG. f. 14a;
SM. 1674; BPS. f. 35a 225; SSV 1546; SMV, 28. 4; JS. 474; JSV. 284. 3;
SKG. f. 18a.
 
434 C V106 (107 ) ; BOR1329 N105 (100) ; Bik3280 N63; Bik3279 N44.
- BIS. 1341 (3818, cf. also 520 ). Mbh. 5.1018 ( crit, ed. 5 33.47 ), 12.5959;
SA. 23. 5; BN. 555; SSV. 1533; JS. 468.
 
435 GVS. 2387 V68; ISM Gore144 V100.
 
436 BORI 328 V145 (137 ); GVS 2387 V150 – 4 ) यद्गर्भवासस्थितं. - )
पाणिमस्तक पदाप्रोद्भूतभव्यांकुरम् । – 'जराभेदैरनेकैर्ऋतं. - 4) चपुर (for मुहुर् ); Meh V144
संदेहा: Bik 3279 V141 ( 37 ),