2023-07-20 10:13:22 by jayusudindra
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सर्वः कृच्छ्रगतोऽपि वाञ्छति जनः सत्त्वानुरूपं फलम् ॥ ३५० ॥
स्वादिष्ठं मधुनो घृताच् च रसवद् यत् प्रस्रवत्यक्षरं
दैवी वागमृतात्मनो रसवतस् तेनैव तृप्ता वयम् ।
कुक्षौ यावदमी भवन्ति धृतये भिक्षा
१३७
तावद् दास्यकृता जनैर्न हि धनैर्भोगान् समीहामहे ॥ ३५१ ॥
॥
हिंसाशून्यमयत्नलभ्यमशनं धात्रा मरुत् कल्पितं
व्यालानां पशवस् तृणाङ्कुरभुजः सृष्टाः स्थलीशायिनः ।
संसारार्णवलङ्घनक्षमधियां वृत्तिः कृता सा नृणां
यामन्वेषयतां प्रयान्ति सततं सर्वे समाप्
पुनस्तरस्यात्; Y2 M1. पुनस्तस्य (for न च तत्तस्य ). W3. + ( by corr. ) G2.3 क्षुधः
न
( for क्षुधा ). C भागतं गतमपि; Y3 एकमागतमपि ; T2 अंकमागतवति; Gst अंगमागतमपि.
A2.3 E5 त्यक्ता. Y2 [अ]धिहंति. 4 ) Y3 सर्व ; G1 + M.2 3 प्राय: ( for सर्व:). W2
कृत्स्नगतोपि. Y3 वांछित
C. स्वात्मानुरूपं; G2.3 सत्त्वानुकूलं.
BIS. 7322 (3335) Bhartr. ed. Bohl. 2. 33. Haeb. 34. lith ed. I, II and
Galan 30, III. 18. Pafic. ed. Orn. 1. 12, Hit. II. 39. ed. Rodr. p. 160. Subhāsh.
300; SRB. p. 79.223 SBH 1025 ( Paiñc, ); Fantrākhyāyika I. 7 ; Edgerton. I. 9;
SS.D.
102b.
1351 } 7 } Found in A B C D E, F1 VIE, ISM Gore 144 V194 [ Also
BORI 329; Punjab 2101 and Jodhpur 3 V7; GVS 2387 and NS1 V10; NS2
V8, V94 (93); BU V9; NS3 V105 (extra ) ]. a ) F 1 यन्मिष्टं ( for स्वादिष्ठं ). A
रसाच; CF1 घृताश्च; · घृतादि. A1c. 2 F1 यत्प्रश्रवत्यक्षरं ; B यद्यच्छ्रवत्यक्षयं; D यत्प्रत्य-
•
पद्याक्षरं; Eo यत्प्रत्यक्षरें; Ea लवत्यक्षरं; Es आप्रश्रवत्यक्षरं – 4) DEISM Gore देवी.
BC तात्मना BC रसवता; D रसवती. B2 तृष्णा (for तृप्ता). - °) C रूक्षा ( for कुक्षौ );
Es भिक्षाहृतां. A1c E3 शक्तवस्.
2 ) B C Eo. 3 F1° कृतार्ज ( Bo जु)
नैर्न हि धनैर; Es
'कृतार्जनैव वसुभिर् ISM Gore नि- ( for हि ). C वृत्तिं ( for भोगान्). D समीद्दाम ते;
E2 समीहामहै.
Haeb. 92. Satakāv. 109. Missing
BIS.7337 (5374) Bhartṛ. ed Bohl. 3. 97.
in the MSS. compared by Bohl. and Weber.
352 { V } Om. in W. Missing in Yr. ") Y1. 2. 1–5 T2. 3 °लब्धम्; Y3 लाभम्
( for 'लभ्यम् ). F2 Y3 कल्पितो. 6 ) G 1 M 3 इतरे ( for पशवस् ). Aa Eo. st Y2.3 Ms
स्पृष्टाः; Dपुष्टाः; J Y 4, 6.3 T G+ तुष्टाः; Ms स्वस्था: ( for सृष्टाः). ") Y3 लंघने. Y1
स्थिरधियां; M1 - क्षमधिया. Jat वृतिं; J20 वृत्तः; T2.3 युक्तिः ( for वृत्तिः). – 4 ) J1.8
यावन्वेषयतां; Y.6.8 T1 G1 तामन्वेषयतां• Est at F1 Y3 G2 प्रयाति. CY3 सहसा ( for
सततं). G1 गताः ( for गुणाः).
BIS. 5437 (2460) Bhartr. ed. Bohl. 3. 98. Haeb, 94 lith ed. II. 10. Santi.
śataka 1. 13 (Haeb. 412). Kävyakal. and Kävyas. 23; SRB. p. 97. 13 (Bh.);
SBH. 3139 ( Bh. ) ; SHVf la, 2 ( Bh. ) ; SU. 1052; SSD. 4, f, 2
१८ भ. सु.