2023-07-20 10:06:13 by jayusudindra
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भर्तृहरिसुभाषितसंग्रहे
सौवर्णैर्लाङ्ग
छित्त्वा कर्पूरखण्डान् वृतिमिह कुरुते कोद्रवाणां समन्तात्
प्रा
स्थितिः पुण्येऽरण्ये सह परिचयो हन्त हरिणैः
फलैर्मेध्या वृत्तिः प्रतिनदि च तल्पानि दृषदः ।
इतीयं सामग्री भवति हरभक्तिं स्पृहयतां
वनं वा गेहं वा सदृशमुपशान्तैकमनसाम् ॥ ३४४ ॥
स्नात्वा गाङ्गैः पयोभिः शुचिकुसुमफलैरर्चयित्वा विभो त्वां
ध्येये ध्यानं निवेश्य क्षितिधरकुहरग्रावपर्यंङ्कमूले ।
१३४
343 { N } Om. in A Y? NS1 ; Punjab 2101 N extra 2.
W1.3 X2_Y1-6.4 T वैदूर्यमय्यां; X। बैडुर्यमय्या. C W1 तिलकणांशू; Eo Fs X
(by corr. ) तिलखलिं; F1 W2.1 तिलखलीं;
तिलगणं; Get तिलखिलं;
" ) CF 2 - 5 H 2
Ys.
Y1A. 1 तिलकणं; Y1Be च लजुनं; G1 M1-3
M 1.5 तिलमलं ( for तिलखलं). BDEot it.2.3.5MW X
5
G1.3M चंदनैर्. B2 DF 2. 5 W X1 Y1 इन्धनाद्यैः; EFis I 2 X 3 - 0T1 GB - 6 लौघे::
Gat इंदनोधैः -- ) B: लिंगलामैर; H लागलायैर; J लांगुलामै: Wt लंगिकार: Wat
लोंगलामैर् . E H I J 1 W2t X 2 X 3 विलखति; T2 विलिखत D Eat att Five Has
J_Y1Ac.4–6.7 (orig. ) TGM अर्कतूलस्य; Fs अर्कमूल्यस्य; Wee. + X 2 X1B कर्ममूलस्य.
खंड; Y+G2.3 षंडान् ( for
• °) C भित्त्वा. B श्रीखंड ( for कर्पूर ): C वृक्षान्; Eot. 3
-खण्डान् ).
कोद्रवस्या; J2 कोद्रवीणां; Wat कौद्रवाणां.
चरितः;
E2 वृतिहिम; Ja Go वृतिमिव; X कृषिमिव; X कृषिमिह; M3 वृतिरिह C
3
X4 C
2) Eo-2.4 विचलति; Jat रचयति; Jio न
Y.8 T G+ न भजति J1 M3 मंदभाग्या:.
BIS. 7226 (3311 ) Bhartr ed. Bohl. and lith ed. I 2 98 lith ed. II. 100,
III. 99. Galan 104 ; SRB. p. 95 127 ; SBH. 3045; SRK. p. 77 10 ( Bh. )
SSD. 4. f. 26b.
344 {V } Found in A D E, F4 V39 [ Also BORI 329 V39 ; Punjab 2101
V38; BORI 328 and Jodhpur 3 V41; Punjab 697 V37 ; NS1 V44; NS2 V32
( 31 ) ; NS3 V110 (extra ). ] ± ) Eo.2–4 F4 स्थितः; Est पुण्यारण्ये. F½ परिवृतो.
As हि रणैः.
० ) D मध्या; Eo. 2 मेधा-; F+ मूलैर् ( for मेध्या ). F½ प्रतिदिनवदत्यापि
हृढदः - ) D हि विरक्तौ; F4 (m.vas in text ) हरशक्तिं ( for हरभक्ति ). Eot स्पृहयति.
• BIS. 7228 (5316 ) Bhartr. lith ed. I. 3. 96, II. 33.
BORI 329, Punjab 2101 and NS1.2. Missing
B ( Ba orig.) C-कुसुमजलैर्: X कुसुमचयैर; Ys
345 {V } Om. in A, F1,
n Y7. – 4 ) J3 गंधै: (for गाङ्गः ).
- फळकुसुमैर्: G4 कुसुम शतैर् D [अ]पि भो त्वां; F2 विभोस्त्वां; G1 निवेद्य; Ms.6 निवेद्यं
( for विभो त्वां ). 0) B H ध्यायन्निर्विश्य पश्यन् ( H3t तस्य ) ; C J2 ध्येयं ध्याने (Ja 'नं )
निवेश्य; D क्वापि ध्यानं निवेश्य; Eat. 3t at Fध्येये ( Ea यं) ध्यानं नियोज्य ( F2 जयं); Fs