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संशयितश्लोकाः ।
संप्रत्येते वयमुपरतं बाल्यमास्था वनान्ते
क्षीणो मोहस् तृणमिव जगज्जालमालोकयामः ॥ २८२ ॥
ब्रह्मज्ञानविवेकिनोऽमलधियः कुर्वन्त्यो दुष्करं
यन् मुञ्चन्त्युपभोगभाञ्जयपि धनान्येकान्ततो निःस्पृहाः ।
न प्राप्तानि पुरा न संप्रति न च प्राप्तौ दृढप्रत्ययो
१११
वाञ्छामात्रपरिग्रहाण्यपि परं त्यक्तुं न शक्ता वयम् ॥ २८३ ॥
ब्रह्माण्डमण्डलीमात्रं किं लोभाय मनस्विनः ।
शफरीस्फुरितेनाब्धेः क्षुब्धता जातु जायते ॥ २८४ ॥ ॥
Y 3 अस्था वनांते; M3 आस्थापनं ते.
क्षीणो).
G + मोदास (f)) मोहस् ).
आलोकयामि; Jdat. (Sr.) आलोकयाम; "। आलोचयामः.
BIS. 4444 (1966 ) Bhartr. ed. Bohl. 1. 93. Haob. 96. Satākāv. 75.5K. 7. 1;
JSV. 304. 14.
283 { V } Om. in A B (Eo V111, extra; We and Baroda 1781 V110,
extra), N$1.2. NS3 V14 and VI09 (extra ). – 4 ) (G1 M 1. 2 तत्वज्ञान. किनो
जडधिय:; S 'कनिर्मलधिय: 11 कुर्वत हे. BEo Hi23 I
H1.2.30 I दुःकरं. -- ') ) Y2 उरुभोग
( for उपभोग - ). D-भांजि विविधानि; : कांचनधनान्; Wit जान्यपि धनानि; XI प्रत्यपि
)
धनानि (sic ) ; X 2 - भात्यपि धनानि. 1) निस्पृहः; F1 - 3.5 J2 3 X X11 G3.1M निस्टहाः.
९) ID न प्राप्नोति; J2 V G2.3 संप्राप्तानि; 13 न प्राप्तं * ; Y17-68 T G1.1 Mha
संप्राप्तान; X 2 संप्राप्ता न; Y37 M3-5 संप्राप्तं न. W1. : नव- ( for न च ). C प्राप्तं ; X 3 प्राप्ते;
G1 प्राध्यां; M1.1 प्राप्यान्;
M2 प्राप्यं ; M5 ग्राप्ता ( for प्राप्तौ ). B1 J2.3 W3.1 Yre MS
हढप्रत्यया; B2 Y 4-4 T G+M12 दृढप्रत्ययान्;
+
+
C नच
च प्रत्ययं; 52 दृढः प्रत्यया;
प्रत्ययो;
- " ) Y: वांछाभृत्र
11 + दृढः
G 1 दृढप्रत्ययाद्. X संप्राप्तं न परित्यजंति न च कांक्षन्ति दृढप्रत्ययाः.
( sic ). H2 ( 3 - परिमहान्यपि; X 2 X1 - 6.3T (GM परिग्रहानपि; X1 - परिग्रहार्थनपि 17
-परिप्रहापि न.
JWY
J W Y 167G1-1 M परि; X कथं ( for परं ).
') Bध्वस्त; Witक्षिसो; Y3 नष्टो; G क्षीगा (for
(जराजालाम्; Gat
C WEBL
जगज्जातम्.
4
BIS 4401 ( 1991 ) Bhartr. cd. Bohl. 3. 14. Hael) lith ed. I. III and Galan
13, lith ed. II. 96. Subhāsh 317. Santis 1. 4 ( Hael). p. 410 ). SRE. p. 375.
224; SKM. 126 17 ; SRK. p. 94 2 ( Kalpataru ) ; SHV. f. 776 872; SU. 1033
·
( Bilhapa 1 ) ; SM. 1095; SN. 291; SSD 4. f 7D; SSV. 1081.
Panjab 697, Srngeri
284 } V } Om in A Fa W, BORI 329 Panjab 2101,
309, NS2, BU114 / 7. Yr missing.
a ) I_Y ± – 64 T GM1. ब्रह्मांडं; Mo. : ब्रांड-.
Bac X1 - स्फुरतेन; Gs
Tic.v. मंडलीभूतं. – 4 ) CF5 X Y 2 3 M4 किं भोगाय; F2 भोगाय च; H J3 X 1 किं लाभाय;
Gst किं लोकाय. M3. + मनस्विनां ( M3 °ना ). – ° ) Est शबरी
M1.25 क्षुभितेन; Get स्फुरितैर् (for स्फुरितेन) F1 [अ]ब्ध:; X124208 TG2 - 6 M1
[अ] ब्धिः; M43 [अ]ब्धौ.
F+ क्षुब्धता किं प्र; X1 क्षुब्धतां जानु;
Y1.2.4 - 6.8 TG4 M3 क्षुब्धो न खलु; Y3 G० क्षुब्धता नैव; क्षुब्धता किं न ; G2.3
3 क्षुब्धो जानु
न; M1, 2 क्षुब्धता किं नु.
4 ) 12 क्षुब्धमायातु;
·
संप्रत्येते वयमुपरतं बाल्यमास्था वनान्ते
क्षीणो मोहस् तृणमिव जगज्जालमालोकयामः ॥ २८२ ॥
ब्रह्मज्ञानविवेकिनोऽमलधियः कुर्वन्त्यो दुष्करं
यन् मुञ्चन्त्युपभोगभाञ्जयपि धनान्येकान्ततो निःस्पृहाः ।
न प्राप्तानि पुरा न संप्रति न च प्राप्तौ दृढप्रत्ययो
१११
वाञ्छामात्रपरिग्रहाण्यपि परं त्यक्तुं न शक्ता वयम् ॥ २८३ ॥
ब्रह्माण्डमण्डलीमात्रं किं लोभाय मनस्विनः ।
शफरीस्फुरितेनाब्धेः क्षुब्धता जातु जायते ॥ २८४ ॥ ॥
Y 3 अस्था वनांते; M3 आस्थापनं ते.
क्षीणो).
G + मोदास (f)) मोहस् ).
आलोकयामि; Jdat. (Sr.) आलोकयाम; "। आलोचयामः.
BIS. 4444 (1966 ) Bhartr. ed. Bohl. 1. 93. Haob. 96. Satākāv. 75.5K. 7. 1;
JSV. 304. 14.
283 { V } Om. in A B (Eo V111, extra; We and Baroda 1781 V110,
extra), N$1.2. NS3 V14 and VI09 (extra ). – 4 ) (G1 M 1. 2 तत्वज्ञान. किनो
जडधिय:; S 'कनिर्मलधिय: 11 कुर्वत हे. BEo Hi23 I
H1.2.30 I दुःकरं. -- ') ) Y2 उरुभोग
( for उपभोग - ). D-भांजि विविधानि; : कांचनधनान्; Wit जान्यपि धनानि; XI प्रत्यपि
)
धनानि (sic ) ; X 2 - भात्यपि धनानि. 1) निस्पृहः; F1 - 3.5 J2 3 X X11 G3.1M निस्टहाः.
९) ID न प्राप्नोति; J2 V G2.3 संप्राप्तानि; 13 न प्राप्तं * ; Y17-68 T G1.1 Mha
संप्राप्तान; X 2 संप्राप्ता न; Y37 M3-5 संप्राप्तं न. W1. : नव- ( for न च ). C प्राप्तं ; X 3 प्राप्ते;
G1 प्राध्यां; M1.1 प्राप्यान्;
M2 प्राप्यं ; M5 ग्राप्ता ( for प्राप्तौ ). B1 J2.3 W3.1 Yre MS
हढप्रत्यया; B2 Y 4-4 T G+M12 दृढप्रत्ययान्;
+
+
C नच
च प्रत्ययं; 52 दृढः प्रत्यया;
प्रत्ययो;
- " ) Y: वांछाभृत्र
11 + दृढः
G 1 दृढप्रत्ययाद्. X संप्राप्तं न परित्यजंति न च कांक्षन्ति दृढप्रत्ययाः.
( sic ). H2 ( 3 - परिमहान्यपि; X 2 X1 - 6.3T (GM परिग्रहानपि; X1 - परिग्रहार्थनपि 17
-परिप्रहापि न.
JWY
J W Y 167G1-1 M परि; X कथं ( for परं ).
') Bध्वस्त; Witक्षिसो; Y3 नष्टो; G क्षीगा (for
(जराजालाम्; Gat
C WEBL
जगज्जातम्.
4
BIS 4401 ( 1991 ) Bhartr. cd. Bohl. 3. 14. Hael) lith ed. I. III and Galan
13, lith ed. II. 96. Subhāsh 317. Santis 1. 4 ( Hael). p. 410 ). SRE. p. 375.
224; SKM. 126 17 ; SRK. p. 94 2 ( Kalpataru ) ; SHV. f. 776 872; SU. 1033
·
( Bilhapa 1 ) ; SM. 1095; SN. 291; SSD 4. f 7D; SSV. 1081.
Panjab 697, Srngeri
284 } V } Om in A Fa W, BORI 329 Panjab 2101,
309, NS2, BU114 / 7. Yr missing.
a ) I_Y ± – 64 T GM1. ब्रह्मांडं; Mo. : ब्रांड-.
Bac X1 - स्फुरतेन; Gs
Tic.v. मंडलीभूतं. – 4 ) CF5 X Y 2 3 M4 किं भोगाय; F2 भोगाय च; H J3 X 1 किं लाभाय;
Gst किं लोकाय. M3. + मनस्विनां ( M3 °ना ). – ° ) Est शबरी
M1.25 क्षुभितेन; Get स्फुरितैर् (for स्फुरितेन) F1 [अ]ब्ध:; X124208 TG2 - 6 M1
[अ] ब्धिः; M43 [अ]ब्धौ.
F+ क्षुब्धता किं प्र; X1 क्षुब्धतां जानु;
Y1.2.4 - 6.8 TG4 M3 क्षुब्धो न खलु; Y3 G० क्षुब्धता नैव; क्षुब्धता किं न ; G2.3
3 क्षुब्धो जानु
न; M1, 2 क्षुब्धता किं नु.
4 ) 12 क्षुब्धमायातु;
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