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संशयितश्लोकाः ।
 
१०३
 
भ्रूभङ्गवीक्षणकटाक्षविलोकितानि
 

कोपप्रसादहसितानि कुतः शशाङ्के ॥ २६२ ॥

 
न संसारोत्पन्नं चरितमनुपश्यामि कुशलं

विपाक: पुण्यानां जनयति भयं मे विमृशतः ।

महद्भिः पुण्यौघैश् चिरपरिगृहीताश् च विषया
 

महान्तो जायन्ते व्यसनमित्र दातुं विषयिणाम् ॥ २६३ ॥

 
नायं ते समयो रहस्यमधुना निद्राति नाथो यदि
 

स्थित्वा द्रक्ष्यति कुप्यति प्रभुरिति द्वारेषु येषां वचः ।

चेतस् तानपहाय याहि भवनं देवस्य विश्वेशितुर्

निर्दोद्रौवारिक निर्दयोत्तयपरुपंषं निःसीमशर्मप्रदम् ॥ २६४ ॥

 
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
 

लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् ।
 
Ś08
 
$58 ( 59 ). ] – 4 ) E2 यत् (for यः). 10-2 शशिनच. A समं करोति. - ") : भ्रक्षेपसस्मित ;
H भ्रक्षेपविस्मित be Hs - निरीक्षितानि; 111.2 - निरीक्षणानि ( for -विलोकितानि). — ) E2
'हसितं च ( for 'तानि ). II1. कुतश्च चंद्रे.
 
BIS. 3149. Subhāsh. 14; Sp. 3323 (Sridhanadadeva); SRB. p. 262. 188;
SBH. 1977; SRK. p. 278. 4 ( Sphutasloka ) ; Kavindravacanasamuecaya 246;
SHV. app. II. f. 8b 85 ( Dhanada ) ; SK 5 155; 7. U. 276; SL f. 3b; SLP. 4. 14•
263 { V } Om. in C X. GVs2387 ś extra 3, and V6.
 
C
 
6 ) B2 D E 2 I
 
"ताश्च ).
धातुं; (13t
 
पुण्योधैश्. W चिरमपि (for चिरपरि ). (61M1.24 °ता हि; I ( by corr. ) तार्थ (for
- 4 ) G1 Y1 महन्तो. X 2 3 इह ; ( 1 M अपि (for इव ). 4 हातुं; F3 जेतुं :
Ya. i A J2t
दातुर. Est 4 (m.v. as in text ) व्यसनिनां; X 3 विषविनां.
BIS. 3476 (1484 ) Bhartr. cd. Bohl. Haeb lith ed, I and II, and Galan 3.
3; SRE. p. 368 43; SBII. 3455 (Bh.) ; SSD. 4. f. 8b.
 
264 {V } Found in C D E F 3-5; BU V41 [Also ISM Kalamkar 195
V 63 (65); BORI 328 V108 ( 106 ) ; Wai 2 V34; Jodhpur 3 V 103 (102); NS3
V 52 and V97 ]. a ) C नायातः (for नायं ते).
 
C
 
निद्राति नाद्यापि हि ; : निद्रा न बाधो
 
न हि; Fs BU निद्राति नाथो न हि.
 
4 ) D E2.5 क्षति; F3 दृप्यति; F½ BU द्रक्ष्यसि
( for द्रक्ष्यति ). Fs पाल्यति; BU पाल्यसि (for कुप्यति ). No ये मां ( for येषां). – )
E6 ते च स्थानपहाय. E2 पाहि ( for याहि ). C पदवीं ( for भवनं ). F3 वै सेवितुं; F4
विश्वप्रभोर (for विश्वेशितुर् ) – 4 ) F5 BU नो दौवारिक. C - निर्भयोक्ति; D F3-5 BU
-निर्दयोक्ति (for निर्दयोक्त्य- ). Fi-पुरुषं ( for परुषं). C संवित्पदं; Do शर्मप्रदः; Fs
संपत्प्रदं.
 
BIS. 3612 (1550) Bhartṛ. in Schiefner and Weber p. 23. lith. ed. II. 3. 40.
265 {N } Om. in X Y1G2.3.5, Goa, Adyar XXII-B-10, and Mysore 1642.
Found in GVS 2387 twice as N11 and N 24, a ) F3 निंदंति. 9 अथ ( for यदि ).