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भर्तृहरिसुभाषितसंप्रदे
 
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्य: प्रयत्नो महान्
आदीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः ॥ १९४ ॥
नाभ्यस्ता भुवि वादिवृन्ददमनी विद्या विनीतोचिता
खड्डायैः करिकुम्भपीठदलनैर्नाकं न नीतं यशः ।
कान्ताकोमलपल्लवाधररसः पीतो न चन्द्रोदये
 
७८
 
तारुण्यं गतमेव निष्फलमहो शून्यालये दीपवत ॥ १९५ ॥
धन्यानां गिरिकन्दरे निवसतां ज्योतिः परं ध्यायताम्
 
आनन्दा श्रुजलं पिबन्ति शकुना निःशङ्कमङ्केशयाः ।
अस्माकं तु मनोरथोपरि-चितप्रासाद्वापीतट-
क्रीडाकानन के लिकौतुकजुषामायुः परं क्षीयते ॥ १९६ ॥
 
BIS. 5479 (2483 ) Bhartr ed. Bobl. 3.76. Haeb. 73 lith ed. I. 75, II. 81.
Galan 69. Subhãsh. 128 Vikramacarita 218; Sp. 679 ( Bh. ) ; SRB. p. 178.1007;
SKM. 98. 40; SRK. p. 37. 2 ( Sphutaśloka) ; SA. 15. 2; SS. 23. 20; SU. 1071 ;
SN. 38; SSD. 4. f. 28a ; SSV. 124; JSV. 13. 18,
 
195 4 ) Y 1 - 3 T G1 M12.6 प्रति ( for भुवि ).
 
A3 E2c J3. W 1 विनीतोचिताः;
 
W2-4
 
CEo J3 W2 T2 G5 M2 +5 वाद-
( for वादि ). A Yr वृंददमने; B दंतदलिनी (Bat.v. 'दमनी ); C दर्पदमनी'; D वृंददलिनी;
Est Fs Go - दंतिदमनी; J3 -वृंदमननी; G+ वृंदशमनी
विनीतोचितः; G1 M2. 3 - महासंगरे. .८ ) Y3 खड्गाखैः. B ( Bat.v. as in text ) CEst -दंत-;
F1.2H -कूट-; F3 Gat कुछ; W2. 3 -पीड-; Y1 -वार- ( for - पीठ- ). (Ao -दलिनैर; D दलनान्;
W1 - 3 Y3 दमनैर्; W+ -मथनैर्; X-दुलनैर् (for दलनैर् ). E3. I नीतं न नाकं. - ● ) Ts
प्रीतो ( for पीतो ). – 3) A0-2 B E2−4 F3. + H I निःफलमहो; C निष्फलतया T3 द्वैपवत्.
 
4
 

 
BIS. 3603 ( 1545 ) Bhartr ed. Bohl. 3. 47. Haeb and Galan 43. lith ed. I.
35 ; II. 82. Subhāsh. 168; Śp. 4151 ( Bh. ); SRB p. 374 217 ( Bh. ); SBH. 3400;
SDK 5.54 3 ( p. 313 ) ; SRK p. 94.7 ( Bh. ) ; SHV app. I f. 3b; SSD 4. f. b.
 
196* Om, in F1 and NS1.
 
a ) C ध्यानानां; Fधन्यास्ते
 
2.
 
TG1. M -कंदरेषु वसतां; JI कंदरेषु निवसातां; X -गहरेषु वसतां.
 
BCFst.v. W Y1, 2, 5–8
Y 3 परे ( for परं ). - )
 
+
 
A Ic मनोरथाः परिचित-; B Eo. 3 - मनोरथैः परिचित ; C F3 H_J2.4
S मनोरथो ( Gst थे ) पर चित- ( J3 'तं ) ; It मनोरथोपरिचय (Icom. मनोरथे उपरि चित).
 
W X Y 1, 2. ±–4 T G1.45 M125 कणान्; MB - गणान् (for - जलं ). F2 अंके स्थिताः. - )
W सु- ( for तु ).
 
[ The difficulty seems to have arisen by taking परिचित as a unit. ] Jit वापीतटं; Yr
चापीतटात्. - ") F क्रीडाकंदुक 40-2 परिक्षीयतां ; A3 E2-4.50 G1 परिक्षीयते.
 
BIS. 3077 ( 1307 ) Bhartr. ed. Bohl. 3. 15. Haeb lith ed. I and Galan 14;
Śp. 4155 ( Bh. ) ; SRB p. 374220 ( Bh. ); SKM. 126.7 ( Bh. ) ; SDK 5.58. 3 (p.
315, Satyabodha); Santiś. 1. 5 (Haeb. p. 411). Padyaveņi 814 (Jagajjivanavra-
jyā ) ; PMT. 290 ( Bh. ) ; SSD 4, f, 9a,