2023-07-16 10:47:41 by jayusudindra
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हंसस्य हन्ति नितरां कुपितो विधाता ।
न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां
वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्तुमसौ समर्थः ॥ ३८ ॥
खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणैः संतापितो मस्तके
30
वाञ्छन् देशमनातपं विधिवशादू बिल्वस्य मूलं गतः ।
तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः
प्रायो गच्छति यत्र भाग्यरहितस् तत्रैव यान्त्यापदः॥ ३९ ॥
38* Om. in NS2. Extra in NS1. Punjab 2101 on margin of f. 5a
as N44. — ‡) F2 J1 W X Y 2 अंभोजनी - A3 -विलासविनोदमेव ; B C D E F1 - 3 H I J 2.3
W (Ws orig.) X Y1 - 8 -निवासविलासमेव ( D 'ससौख्यं ) ; Is - विलासनमेव हंत;
Co
W
( by corr. ) Y8.8 T1.2 -विहारविलासमेव; Gs -विलासविहासमेव: Ms -विलासिनिवासमेव.
8 ) W½ हंत्तस्य ( for हंसस्य ) Eit (and Ec ) हंत; G1 हंतु (for हन्ति ). C सुतरां ( for
नितरां). Y3 बलवान्;
M3 कवितो ( for कुपितो). X1A [s]पि धाता (for विधाता). — )
Ao - 2 नैवास्य; A3 नैतस्य; Es न न्वस्य; M3 नान्यस्य ( for न त्वस्य ). F+ 'भेदविधि;
J1 'भेदविध - ( for 'भेदविधौ ). B प्रगल्भां; C प्रसिद्धं;
;
D प्रदिग्धां (for प्रसिद्धां). - )
A 2 B1 D E12t ( and Ec generally ) Fs I J3 W2. 3 X 2 T3 (orig. ) वैदग्ध-; C वैगंध्य-
( for वैदग्ध्य- ). C अपहातुम्; G2 M1.4.0 अपहंतुम् (for 'हर्तुम् ).
BIS. 544 (201 ) Bhartr ed. Bohl. 2. 15. Haeb 43. Galan 18; Sp. 797 ( Bh. );
SRB. p. 221. 15 (Bh.); SKM. 15. 2 ; SRK. p. 183 2 ( Bh.) ; ST. 12. 2; VS. 22;
SK. 3. 136; SU. 1149 (Bh. ) ; SKG. f. 16a.
39 ) F2 खल्वाटे; T1A G1 - 1M ख ( M3 खा ) वटो. C J2 G1 M2. 4 संताडितो; Eo
'संतापतो; J1.3 Y4-8 T G2 - 5 संतापिते ( for 'पितो ). - 8 ) J Y 4-8 T G2 −5 M1. 2 गच्छन्; G₁
आम्यन् (for वाञ्छन्). C J_Y+4 T GM2 द्रुतगति: ; X 2 द्रुतमसौ ( for विधिवशाद् ).
I छायार्थी समुपेत्य सत्वरमसौ. D F1. 3 J S ताल (W1-3 °ड) स्य (for बिल्वस्य ). Es T2 मूले.
T2 स्थितः (for गतः ). – °) W तत्राप्याशु (for 'प्यस्य ). J1 पततस्. A3 I तत्रोच्चैर्महता
फलेन पतता; T3 तत्रस्थेपि महत्फलं निपतितं; G1 तत्रस्थस्य च तत्फलेन पतता;
तत्फलैर्निपतितैर् T2. 8 भिनं ( for भग्नं ). CM1.35 समस्त ; X सशब्दः ( for सशब्दं ).
तालस्य भग्नं शिरः – 3 ) F1 - 3 दैवरहितस्; J1 3 X Y1 4-8 TGM1. 2. 1.6 दैवहतकस्; Ja
3 4, 5
दैवकृतकस् (for भाग्यरहितस्). M3 यत्रायांति हि मंदभाग्यनिवहस्. Ao.1 तत्रैव यात्यापदः
(com. आपदो याति probably acc. plural ) ; A3C E3t F1.26 H1 ( c.v as in text ). 2
I W तत्रापदां भाजनं; X 2 G2t तत्रैव यंत्यापदः.
M3 तत्रस्थस्य सु
J1
a
BIS.2048 (802) Bhartr ed. Bohl. 2.86. Haeb. 44. lith ed. I. and III 89.
Galan 91. Subhash. 308; Śp. 437 (Bh.); SRB. p. 94. 114 (Dibiradevāditya);
SBH 3141 ( Diviradevāditya ) ; SRH 36 7 ( Paiñc. ) ; SRK. p. 71, 13 (Bh.) ;
VS. 959 ( Devāditya ) ; SHV f 65a ( Bh. ) and 80b; SS. 46. 8; SG. f, 34a;
SSD. 4. f. 4b; SMV. 8 5.
३ भ. सु.