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जैसे मन में कोई पदार्थ खाने की इच्छा हुई तब पास में
खरीदने के निमित्त द्रव्य न लेकर उस मुहल्ले में जाओ जिसमें
कि इच्छित पदार्थ मौजूद हों, और उधर से दैनिक आया जाया
करो, परन्तु खरीदो मत, फिर आपसे आप उन पदार्थों के
खाने की इच्छा के बनिस्बत घृणा होने लगेगी। अगर मनकी
तृप्ति के निमित्त पदार्थ खाओगे तो यह तृप्ति अग्नि में घृत का
कार्य करेगी । इसलिये वासनाएँ जो मन में आती हैं उन्हें
देखे, परन्तु भोगे नहीं, फिर आप से आप मन एकाग्र
हो जायेगा ।
 
शङ्का-- दमः कः ?
 
अर्थ:-- दम किसे कहते हैं ?
 
समाधान-- चक्षुरादिबाह्येन्द्रियनिग्रहः ।
 
अर्थ:-- नेत्र आदि जो बाह्य ( बाहर की ) ज्ञानेन्द्रियां
उनको निग्रह ( वश में ) करना दम कहलाता है। यह कार्य
तभी सम्पन्न हो सकेगा जब कि मनको अपने वश कर चुकेंगे,
क्योंकि ये ज्ञानेन्द्रियाँयां बगैर मन की सहायता के किसी विषय
भोगों को प्राप्त नहीं कर सकतीं । इसलिये प्रथम साधन को
ठीक करके पश्चात् इस दूसरे साधन को पूरा करने की
चेष्टा करो ।
 
शङ्का-- उपरतिः का ?
 
अर्थ:-- उपरति किसे कहते हैं ?
 
समाधान-- स्वधर्मानुष्ठानमेव ।