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होना दूसरे साधन का कार्य है। अब तीसरे साधन के सिद्ध
करने में शम, दम आदि जो छः पदार्थ हैं उनको ठीक सिद्ध
करना तीसरा साधन है। जब यह तीनों साधन पूर्ण हो जाँय,
तब मोक्ष की इच्छा करना चतुर्थ साधन का नाम है। इनमें
एक भी कमजोर होगा तो चतुर्थ साधन सिद्ध न हो सकेगा,
जैसा कि व्यासजी ने कहा है कि-- "अथातो ब्रह्मजिज्ञासा"
यानी चारों साधनों को पूर्ण करने के पश्चात् ब्रह्मेच्छा करना
उचित है ।
 
शङ्का-- नित्याऽनित्यवस्तुविवेकः कः ?
 
अर्थ-- नित्य और अनित्य वस्तु का पृथक् २ ज्ञान
क्या है ?
 
समाधान-- नित्यवस्त्वेकं ब्रह्म तद्व्यतिरिक्तं सर्वम-
नित्यम् । अयमेव नित्यानित्यवस्तुविवेकः ।
 
अर्थ:-- नित्य अर्थात् तीनों कालों में सत्यस्वरूप रहने
वाला केवल ब्रह्म है, उसके अतिरिक्त यह जो स्थावर जङ्गम
रूप यावन्मात्र जगत है सो सम्पूर्ण अनित्य हैं यानी समय
पाकर सब नष्ट हो जाता है, इसका मतलब यह है कि नित्य से
प्रेम करता हुआ अनित्य की जरा भी इच्छा न करना यह प्रथम
साधन सम्पूर्ण साधनों की प्राप्ति का मूल कारण है।
 
अब दूसरे साधन की क्या विधि होगी? इसलिए पुनः पूछते हैं--
 
शङ्का-- विरागः कः ?
 
अर्थ:-- विराग क्या वस्तु है ?