2022-08-01 06:11:56 by Andhrabharati
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अच्छा, अब ग्रन्थ समाप्ति होते देख, आप लोगों से दो शब्द
और कहना चाहता हूँ कि जहाँ तक हो सके निरन्तर सत्य बोलने की
आदत डालें तथा भक्ति मार्ग में मन लगाते हुये इन नियमों का निरन्तर
अभ्यास करें तो समय पाकर पूर्ण ज्ञान द्वारा ईश्वर का दर्शन होगा।
अब मुझे चाहिये कि बिदाई के मौके पर आपको एक और गायन
सुनाऊँ--
गाना
जग के अधार स्वामी, सब ठौर तुम्हीं हो ।
तुमसे है सारी दुनिया, सब- रूप तुम्हीं हो ॥१॥ जगके०॰
भूले हैं तेरी छाया, मन मोह क्यों फँसाया ।
लेना उबार स्वामी, सब ठौर तुम्हीं हो ॥२॥ जगके०॰
हम ढूँढ़ते हैं तुमको, तुम छिपते जा रहे हो ।
है भय तुम्हें तो किसका ? सब ठौर तुम्हीं हो ॥३॥ जगके०॰
जाने न रूप तेरा, क्यों कर के गायें गाथा ।
आकारहोहीन स्वामी, सब ठौर तुम्हीं हो ॥४॥ जगके०
जब दिल न माने<flag>मेरा</flag>, मन्दिर में ढूँढ़ता हूँ ।
देना दरश "बिहारी"-- सब ठौर तुम्हीं हो ॥ ५॥ जगके०
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और कहना चाहता हूँ कि जहाँ तक हो सके निरन्तर सत्य बोलने की
आदत डालें तथा भक्ति मार्ग में मन लगाते हुये इन नियमों का निरन्तर
अभ्यास करें तो समय पाकर पूर्ण ज्ञान द्वारा ईश्वर का दर्शन होगा।
अब मुझे चाहिये कि बिदाई के मौके पर आपको एक और गायन
सुनाऊँ--
गाना
जग के अधार स्वामी, सब ठौर तुम्हीं हो ।
तुमसे है सारी दुनिया, सब
भूले हैं तेरी छाया, मन मोह क्यों फँसाया ।
लेना उबार स्वामी, सब ठौर तुम्हीं हो ॥२॥ जगके
हम ढूँढ़ते हैं तुमको, तुम छिपते जा रहे हो ।
है भय तुम्हें तो किसका ? सब ठौर तुम्हीं हो ॥३॥ जगके
जाने न रूप तेरा, क्यों कर
आकार
जब दिल न माने
देना दरश "बिहारी"-- सब ठौर तुम्हीं हो ॥ ५॥ जगके