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अब यह शङ्का फिर होती है कि जीवन मुक्त के क्या लक्षण हैं
उसे जानने की इच्छा से पुनः शंका करते हैं ।
 
शङ्का-- ननु जीवन्मुक्तः कः ?
 
अर्थ-- <error>जीवनमुक्त</error><fix>जीवन्मुक्त</fix> किसे कहते हैं ?
 
समाधान-- यथा देहोऽहं ब्राह्मणोऽहं शूद्रोऽहम-
स्मीति दृढ़निश्चयस्तथा नाऽहं ब्राह्मणो,
न शूद्रो, न पुरुषः, किन्त्वसङ्गः, सच्चि-
दानन्दस्वरूपः, स्वप्रकाशः, सर्वान्त-
र्यामी चिदाकाशरूपोऽस्मीति दृढ़निश्च-
यरूपापरोक्षज्ञानवान् जीवन्मुक्तः ।
 
अर्थ:-- जैसे आज किसी नवीन सम्प्रदाय वाले से पूछो
कि आप कौन जाति के हैं ? तब वह हँसकर कहता है कि मैं
तो मनुष्य हूँ। परन्तु यह भी बन्धन का कारण है जैसा कि
अन्य जातियाँ हैं। शास्त्र सा कह रहा है कि ईश्वर के घर
जाति नहीं मानी जाती । परन्तु कब नहीं मानी जाती उसी के
लिये उपरोक्त ज्ञान वर्णन किया था। जब वह पूर्ण प्राप्त हो
चुका तब जातियाँ तथा बाहरी मूर्ति पूजादि बन्धन तथा भ्रम
का कारण है अन्यथा मानना जरूरी है। अब उपरोक्त प्रमाणों
की तर झुकते हैं, कि मैं देह रूप हूँ, या पुरुष हूँ, अथवा
मैं ब्राह्मण हूँ, तथा शुशूद्र हूँ, ऐसा जो दृढ़ निश्य है यह बन्धन