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[ग्रन्थकार की प्रतिज्ञा]
 
साधनचतुष्टयसम्पन्नाधिकारिणां
मोक्षसाधनभूतं तत्त्वविवेकप्रकारं वक्ष्यामः ।
 
अर्थ--साधन चतुष्टय कहिये मोक्ष के जो साधन चार हैं
उनकरके सम्पन्न यानी युक्त जो अधिकारी पुरुष हैं वे ही मोक्ष
के साधक होकर तत्त्वविवेक के अधिकारी होते हैं। तत्त्वविवेक
अर्थात् आकाश-वायु-अग्नि-जल-पृथ्वी इन पञ्चमहाभूतों के विषय
अभिन्नरूप से प्रतीत होने वाला जो ब्रह्म, जगत का उपादान
कारण हैं वही तत्त्वों की एकता से तथा माया के सङ्गी होने पर
जीव भाव को प्राप्त होता है, उसका तथा पञ्चमहाभूतों का
पृथक् ज्ञान जिस रीति के द्वारा हो उस रीति को इस तत्वबोध
ग्रन्थ में वर्णन करेंगे।
 
शङ्का--साधनचतुष्टयं किम् ?
अर्थ--वह चारों साधन कौन से हैं ?
समाधान- -नित्याऽनित्यवस्तुविवेकः ॥ १ ॥ इहा-
मुत्रार्थफलभोगविरागः ॥ २ ॥ शमादिषट्कसम्पत्तिः
॥ ३ ॥ मुमुक्षुत्वं चेति ॥ ४ ॥
 
अर्थ--प्रथम साधन का नाम नित्य और अनित्य वस्तु
का ज्ञान प्राप्त करना है । यह जब पूर्ण सिद्ध हो
जाय तब दूसरा साधन करे, यानी इस लोक तथा परलोक
इन दोनों के बीच जो २ पदाथ हैं उनके भोगने में अनिच्छा