2022-07-22 00:37:25 by akprasad
This page has been fully proofread once and needs a second look.
टुकड़ों में से एक एक टुकड़े के चार २ हिस्से करके रक्खे और
एक टुकड़े को साबून रहने दे, फिर जो साबू टुकड़ा है उसमें
अपने से अन्य तत्त्रों के आधे के चार २ जो टुकड़े किये थे
उनमें से एक टुकड़ा और एक वह टुकड़ा जो पञ्चतत्वों के
तमोगुण के आधे कर रक्खे थे, इन दोनों को मिलाने से पश्ची-
करण होता है, अर्थात् इस पञ्चीकरण के करने में एक एक
महाभूत का अपना आधा माग और आधे में अपने से अन्य
चारों भूतों के चार भाग मिलाने पर पञ्चीकरण होता है।
इस विषय को लेकर श्री व्यासजी ने भी कहा है कि--
4‘वैशेष्यात तद्वादस्तद्वादः" यानी प्रत्येक महाभूत की अधि
कता से यह पृथिवी जल-अग्नि-वायु-आकाशादि का व्यवहार
होता है, और इन्हीं पञ्चपहाभूतों के पश्चीकरण से स्थूल शरीर
बनता है, इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति होता है, यानी
आप जो समझते हैं कि इस शरीर के अलावा ब्रह्माण्ड की
उत्पत्ति में बहुत विलम्ब तथा कठिनता पड़ी होगो, सो नहीं
है जिस प्रकार पञ्च महाभूतों से पिण्ड उत्पन्न होता है उसी
प्रकार ब्रह्माण्ड भी उत्पन्न होता है, इस कारण पिण्ड ( शरीर )
ब्रह्माड ( सम्पूर्ण विश्व ) की एकता जानो । यथा--
जोवनामकं
स्थूल शरीराभिमानी
ब्रह्म प्रतिबिम्बं भवति, स एव जीवः
प्रकृत्या
स्वस्मादीश्वरभिन्नत्वेन
एक टुकड़े को साबून रहने दे, फिर जो साबू टुकड़ा है उसमें
अपने से अन्य तत्त्रों के आधे के चार २ जो टुकड़े किये थे
उनमें से एक टुकड़ा और एक वह टुकड़ा जो पञ्चतत्वों के
तमोगुण के आधे कर रक्खे थे, इन दोनों को मिलाने से पश्ची-
करण होता है, अर्थात् इस पञ्चीकरण के करने में एक एक
महाभूत का अपना आधा माग और आधे में अपने से अन्य
चारों भूतों के चार भाग मिलाने पर पञ्चीकरण होता है।
इस विषय को लेकर श्री व्यासजी ने भी कहा है कि--
4‘वैशेष्यात तद्वादस्तद्वादः" यानी प्रत्येक महाभूत की अधि
कता से यह पृथिवी जल-अग्नि-वायु-आकाशादि का व्यवहार
होता है, और इन्हीं पञ्चपहाभूतों के पश्चीकरण से स्थूल शरीर
बनता है, इसी प्रकार इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति होता है, यानी
आप जो समझते हैं कि इस शरीर के अलावा ब्रह्माण्ड की
उत्पत्ति में बहुत विलम्ब तथा कठिनता पड़ी होगो, सो नहीं
है जिस प्रकार पञ्च महाभूतों से पिण्ड उत्पन्न होता है उसी
प्रकार ब्रह्माण्ड भी उत्पन्न होता है, इस कारण पिण्ड ( शरीर )
ब्रह्माड ( सम्पूर्ण विश्व ) की एकता जानो । यथा--
जोवनामकं
स्थूल शरीराभिमानी
ब्रह्म प्रतिबिम्बं भवति, स एव जीवः
प्रकृत्या
स्वस्मादीश्वरभिन्नत्वेन