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के सात्त्विक अंशों से पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ तथा मनादि चार अन्तः-
करण की वृत्तियाँ यह ९ नौ पदार्थ उत्पन्न हुये ।
 
राजसांशात् पञ्च कर्मेन्द्रियोत्पत्तिः ।

एतेषां पञ्चतत्त्वानां मध्ये आकाशस्य
राजसांशात् वागिन्द्रियं सम्भूतम् ।
वायोः राजसांशात् पाणीन्द्रियं सम्भूतम्,
वह्नेः राजसांशात् पादेन्द्रियं सम्भूतम् ॥
जलस्य राजसांशात् उपस्थेन्द्रियं सम्भूतम् ।
पृथिव्या राजसांशात् गुदेन्द्रियं सम्भूतम् ॥
एतेषां समष्टिराजसांशात् पञ्चप्राणाः सम्भूताः ।
 
अर्थ:-- इन पांचों तत्त्वों के बीच से प्रथम आकाश के
राजस (रजोगुण) अंश से वाक् (वाणी) इन्द्रिय उत्पन्न हुई,
पश्चात् वायु तत्त्व के रजोगुण से हाथ उत्पन्न हुये फिर अग्नि
तत्त्व के रजोगुण से पैर उत्पन्न हुए और जल तत्त्व के राजस
अंश से जननेन्द्रिय उत्पन्न हुई, पश्चात् पृथिवी तत्त्व के राजस
अंश से गुदेन्द्रिय उत्पन्न हुई, इसके बाद इन पांचों तत्वों के
रजोगुणों को मिलाया तब पांचो प्राणों की उत्पत्ति हुई। इस
प्रकार पांच कर्मेन्द्रिय और पांच प्राणों को मिलाया, तब १०
दश तत्व पञ्चमहाभूतों के राजस अंश से उत्पन्न हुए। सात्त्विक
अंश के ९ और राजस अंश के १० इन दोनों का योग १९
उन्नीस तत्त्वों की उत्पत्ति हुई ।