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(नाक) इन्द्रिय की उत्पत्ति हुई, जब इन पाँचों तत्वों के
सात्त्विक अंश से पृथक् २ कर्म करने वाली पाँच ज्ञानेन्द्रिय
निर्माण कर चुके तब इन पाँचों तत्वों के सात्त्विक अंशों को
इकट्ठा किया तब मन, बुद्धि, अहङ्कार, चित्त और अन्तःकरण
की उत्पत्ति हुई। आप पाँचों ज्ञानेन्द्रियों के तो कार्य जानते
ही हैं परन्तु यहाँ सात्त्विक अंश से मन-बुद्धि-अहङ्कार-चित्त और
अन्तःकरण उत्पन्न हुये इनके कार्य क्या हैं तथा कौन २ देवता
हैं, उनको प्रथम वर्णन करते हैं।
 
सङ्कल्प-विकल्पात्मकं मनः, निश्चया-
त्मिका बुद्धिः, अहंकर्ता अहंकारः, चिन्तन-
कर्तृ चित्तम्, मनसो देवता चन्द्रमाः,
बुद्धेर्ब्रह्मा, अहङ्कारस्य रुद्रः, चित्तस्य वासुदेवः ।
 
अर्थः-- सङ्कल्प, विकल्प (करूं या न करूँ, जाऊँ कि न
जाऊँ ) इत्यादि कार्य मन के द्वारा ही उत्पन्न होते हैं, परन्तु
बुद्धि इन्द्रिय द्वारा यह कार्य जरूर करना चाहिये ऐसा निश्चय
होता है, और मैं हूँ, यह मैंने बताया, मेरा है ऐसा ज्ञान का
नाम अहङ्कार है, तथा प्रत्येक वस्तु को स्मरण (याद ) करने
वाला चित्त है, अब इनके देवता वर्णन किये जाते हैं कि मन
इन्द्रिय का देव चन्द्रमा है, बुद्धि इन्द्रिय का देव ब्रह्मा है,
अहङ्कार इन्द्रिय का देव रुद्र (महादेव) हैं, और चित्त इन्द्रिय
का देव वासुदेव (विष्णु) हैं । इस प्रकार आकाशादि पञ्च भूतों