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फिर जल से पृथ्वी को निर्माण किया, परन्तु इन सब की
अपने आधीन रखा ।
 
परन्तु सांख्यमतावलम्बी पुरुष इसे (माया को ) मूल
प्रकृति और अव्याकृत तथा प्रधान भी कहते हैं, जैसा कि कहा
है "यदकर्तृसांख्या" जो ईश्वर को अकर्ता कहते हैं पर यह
भाषाश्रित अज्ञानावस्था का द्योतक है ।
 
सात्त्विकांशात् पञ्चज्ञानेन्द्रियोत्पत्तिः --
 
एतेषां पञ्चतत्त्वानां मध्ये प्रकाशस्य
सात्त्विकांशाच्छ्रोत्रेन्द्रियं सम्भूतम्,
वायोः सात्त्विकांशात्त्वागिन्द्रियं सम्भूतम्,
अग्नेः सात्त्विकांशाच्चक्षुरिन्द्रियं सम्भूतम्,
जलस्य सात्त्विकांशाद्रसनेन्द्रियं सम्भूतम्,
पृथिव्याः सात्त्विकांशात् प्राणेन्द्रियं सम्भूतम्,
एतेषां पञ्चतत्त्वानां समष्टि सात्त्विकांशा-
न्मनोबुद्ध्यहङ्कारचित्तान्तःकरणानि सम्भूतानि ।
 
अर्थ -- इन पाँचों तत्वों के मध्य से प्रथम आकाश तत्त्व
के सात्विक अंश से कान इन्द्रिय की उत्पत्ति हुई, पश्चात् वायु
तत्त्व के सात्विक अंश से त्वचा ( चमड़ा ) इन्द्रिय की उत्पत्ति
हुई, अग्नि तत्त्व के सात्तिक अंश से रसना ( जीभ ) इन्द्रिय
की उत्पत्ति हुई, पश्चात् पृथिवी तत्त्व के सात्त्विक अंश से घ्राण