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अथ तत्वबोध उत्तरार्धः प्रारम्भः
 
नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभं
प्लवं सुकल्पं गुरुकर्णधारम् ।
मयानुकूलेन नभस्वतेरितं
पुमान् भवाब्धिं न तरेत्स आत्महा ॥
 
अर्थ:-- जो परम दुर्लभ नर देह रूपी दृढ़ नौका को पाकर
तथा गुरु रूपी कर्णधार और ईश्वर कृपा रूपी अनुकूल वायु
पाकर भी जो प्राणी इस भवसागर से पार न हो, वह आत्म-
हत्या का भागी होता है।
 
अथ चतुर्विंशतितत्त्वोत्पत्तिप्रकारं वक्ष्यामः ।
 
अर्थ-- अब २४ तत्त्वों के उत्पत्ति का वर्णन करेंगे ।
 
ब्रह्माश्रया सत्त्वरजस्तमोगुणात्मिका माया
अस्ति, तत आकाशः सम्भूतः, आकाशाद्वायुः,
वायोस्तेजः, तेजस आपः, अद्भ्यः पृथिवीम् ।
 
अर्थः-- ब्रह्मा ने सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण इन तीनों
को समान भाग मिलाकर माया को निर्माण किया, पश्चात्
आकाश निर्माण किया, आकाश तत्व से वायु को और वायु
तत्त्व से अग्नि को तथा अग्नि तत्व से जल को उत्पन्न किया