2022-07-23 02:10:18 by akprasad
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पञ्चकोशादिकं मदीयत्वेन ज्ञातमात्मा न भवति ।
अर्थ:--हम अज्ञानावस्था में पड़कर भ्रान्ति से अपने को
पञ्चकोशादिक रूप मान इस प्रकार व्यवहार करते हैं कि मेरा
शरीर है, यह मेरे प्राण हैं, यह मेरा मन है, यह मेरी बुद्धि है,
यह मेरा ज्ञान है, परन्तु यह आत्मा पञ्चकोश रूप नहीं है,
इस कारण पश्ञ्चकोशादिकों को मेरा है इस तरह न जानना
चाहिए क्योंकि जैसे धन-गहने-गृह-सीस्त्री-पुत्रादि अपने से भिन्न
हैं, उसी प्रकार पञ्चकोशादिक आत्मारूप नहीं है, किन्तु आत्मा
से भिन्न हैं इसलिये इन्हें अपना मानना वृथा है क्योंकि यह
तो माया के रचे हुए हैं, समय पाकर नष्ट हो जायेंगे परन्तु
आत्मा तो नित्य है और माया का साक्षी है ।
शङ्का--आत्मा तर्हि कः ?
अर्थ:--तो आत्मा का स्वरूप क्या है ?
समाधान--सच्चिदानन्दस्वरूपः ।
अर्थः--आत्मा सच्चिदानन्द स्वरूप है <error>?</error> <fix>।</fix>
शङ्का--सत्किम् ?
अर्थः--सत् किसे कहते हैं ?
समाधान--कालत्रयेऽपि तिष्ठतीति सत् ।
अर्थः--जो तीनों कालों (भूत-वर्तमान-भविष्य) में निवास
करता हुआ एक रस से रहे उसे सत् कहते हैं।
अर्थ:--हम अज्ञानावस्था में पड़कर भ्रान्ति से अपने को
पञ्चकोशादिक रूप मान इस प्रकार व्यवहार करते हैं कि मेरा
शरीर है, यह मेरे प्राण हैं, यह मेरा मन है, यह मेरी बुद्धि है,
यह मेरा ज्ञान है, परन्तु यह आत्मा पञ्चकोश रूप नहीं है,
इस कारण प
चाहिए क्योंकि जैसे धन-गहने-गृह-
हैं, उसी प्रकार पञ्चकोशादिक आत्मारूप नहीं है, किन्तु आत्मा
से भिन्न हैं इसलिये इन्हें अपना मानना वृथा है क्योंकि यह
तो माया के रचे हुए हैं, समय पाकर नष्ट हो जायेंगे परन्तु
आत्मा तो नित्य है और माया का साक्षी है ।
शङ्का--आत्मा तर्हि कः ?
अर्थ:--तो आत्मा का स्वरूप क्या है ?
समाधान--सच्चिदानन्दस्वरूपः ।
अर्थः--आत्मा सच्चिदानन्द स्वरूप है <error>?</error> <fix>।</fix>
शङ्का--सत्किम् ?
अर्थः--सत् किसे कहते हैं ?
समाधान--कालत्रयेऽपि तिष्ठतीति सत् ।
अर्थः--जो तीनों कालों (भूत-वर्तमान-भविष्य) में निवास
करता हुआ एक रस से रहे उसे सत् कहते हैं।