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फिर भी ज्ञान रहता है परन्तु उतना दिव्य ज्ञान नहीं रहता।
 
शङ्का--आनन्दमयः कोशः कः ?
 
अर्थ:- आनन्दमय कोश किसे कहते हैं ?
 
समाधान--एवमेव कारणशरीरभृताविद्यास्थमलि-
नसत्त्वं प्रियादिवृत्तिसहितं सत् आनन्दमयः कोशः ।
 
अर्थ:--इसलिये यह जो कारण शरीर पञ्च महाभूत
अविद्या स्वरूप है उसमें स्थित जो प्रियादि वृत्ति मलिन सत्त्व
(रजोगुण, तमोगुण) से तिरस्कृत सत्त्वगुण, और प्रिय यानी
इच्छानुकूल वस्तु के देखने से उत्पन्न हुआ सुख 'प्रिय' कह-
लाता है। और इच्छा के अनुसार वस्तु के प्राप्त होने से उत्पन्न
हुआ जो सुख है उसे 'मोद' कहते हैं तथा अभीष्ट वस्तु के
भोगने से उत्पन्न हुआ जो सुख उसे 'प्रमोद' कहते हैं, इस
प्रकार यह कोश अधिक आनन्द का भोग स्थान होने से
आनन्दमय कोश कहलाता है ।
 
परन्तु आत्मा माया का सङ्गी होकर इन्हें अपना मान बैठता है
इसी से सुख दुःखों को भोगता है पर यह सब आत्मा नहीं, यथा--
 
एतत्कोशपञ्चकं मदीयं शरीरं मदीयाः
प्राणाः, मदीयं मनश्च, मदीया बुद्धिर्मदीयं
ज्ञानमिति स्वेनैव ज्ञायते । तद्यथा मदीयत्वेन
ज्ञातं कटककुण्डलगृहादिकं स्वस्माद्भिन्नं तथा