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अर्थ:--कान इत्यादि पूर्वोक्त ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा जो
शब्द, स्पर्धादि विषयों का भोग भोगा जाता है उसे जाग्रत्
अवस्था कहते हैं, तथा स्थूल शरीर का अभिमानी जो आत्मा
है वह विश्व कहलाता है, अर्थात् स्थूल भोगों का भोगनेवाला
विश्वरूप आत्मा जाग्रत् अवस्था का साक्षी तथा उससे भिन्न
है, क्योंकि अवस्था का तो परिवर्तन होता है परन्तु आत्मा
निश्चल तथा चेतन रूप नित्य है ।
 
शङ्का--स्वप्नावस्था का ?
 
अर्थ:--स्वप्नावस्था किसे कहते हैं ?
 
समाधान - जाग्रदवस्थायां यद्द्दृष्टं यच्छ्रुतं तज्जनि-
तवासनया निद्रासमये यः प्रपञ्चः प्रतीयते सा
स्वप्नावस्था । सूक्ष्मशरीराभिमानी आत्मा
तैजस इत्युच्यते ।
 
अर्थ:--जाग्रत् अवस्था के समय इन्द्रियों की सहायता
से जो २ पदार्थ देखे तथा सुने व भोगे हैं उन्हीं की वासना
मात्र निद्रा के समय दृष्टिगोचर होती है उसी को स्वावस्था
कहते हैं, यह स्वमात्रस्था सूक्ष्म शरीर में होती है, उस सूक्ष्म
शरीर का अभिमानी आत्मा तैजस कहलाता है ।
 
शङ्का - अतः सुषुप्त्यवस्था का ?
 
अर्थ:--अच्छा, सुषुप्ति अवस्था किसे कहते हैं ?