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अर्थ:--नहीं हो सकता निर्वाचन जिसका अर्थात् माया
को सत्य कहें तो ज्ञान होने के बाद वह नष्ट न होनी चाहिये,
अथवा उसे झूठी कहें तो संसार की उत्पत्ति उसके वगैर कैसे
हुई ? इत्यादि शङ्का होने पर कहते हैं कि जैसे रस्सी अँधेरे में
होने से सर्प का भय होता है परन्तु प्रकाश से देखने पर वह
सर्प का भय जाता रहता है इसी प्रकार माया भी सत्य तथा
मिथ्या रूप केवल अज्ञान रूपी अन्धकार के रहते मायाश्रित
मिथ्या जगत सत्य माना जाता है, ज्ञानरूपी प्रकाश होने पर
रज्जु रूप कल्पित सर्प का भय जाता रहता है तथा तत्स्वरूप
और स्थूल तथा सूक्ष्म शरीर का कारण मात्र अर्थात् बीज और
निज स्वरूप का अज्ञान तथा निर्विकल्प रूप जो है वही कारण
शरीर है ।
 
शङ्का--अवस्था त्र्यं किम् ?
 
अर्थः--तीनों अवस्था कौनसी हैं ?
 
समाधान--जाग्रत्स्वप्नसुषुप्त्यवस्थाः ।
 
अर्थः--जाग्रत् १, स्वप्न २, और सुषुप्ति ३, ये तीन
अवस्थाएँ हैं।
 
शङ्का--जाग्रदवस्था का ?
 
अर्थः--जाग्रत अवस्था किसे कहते हैं ?
 
समाधान--श्रोत्रादिज्ञानेन्द्रियैः शब्दादिविषयैश्च
ज्ञायत इति यत्सा जाग्रदवस्था । स्थूलशरीराभि-
मानी आत्मा विश्व इत्युच्यते ।