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दुःख प्रगट नहीं करते क्योंकि इसमें तो विष्णु का निवास है,
इसलिये ब्राह्मणों के चरणों में नमस्कार किया जाता है; एक तो
विष्णु का निवास दूसरे ये लोग इन्हीं पैरों से घूम २ कर
तीर्थों में भ्रमण कर जनता को धर्म मार्ग की तरफ ले जाते
हैं। गुदा के जो मृत्यु ( यमराज ) कहा सो ठीक है, क्योंकि
मृत्यु का कर्तव्य है कि जगत् का संशोधन करना तो गुदा का
भी वही कार्य है, याने शरीर की सम्पूर्ण बीमारियों को साफ
करते रहना इसके लिए वैद्य-डाक्टरों को पूछो कि अगर दस्त
की कब्ज होने लगे तो कौन २ सी बीमारियाँ अपना घर बना लेती
हैं इस लिये गुदा का देव मृत्यु ठीक ही है, जैसा देव वैसा पुजारी ।
तथा जननेन्द्रिय का जो देव ब्रह्मा कहा सो ठीक है क्योंकि
सृष्टि का कर्ता ब्रह्मा है, तथा बह्मा का निवास कमल पर कहा
है । वही हालत लिंगेन्द्रिय की है जब गर्भाशय रूपी कमल
पर इसका निवास होता है तो फिर कई रूपों से सृष्टि के
करने में समर्थ होता है, जैसे कहा है "प्रजापतिश्चरति गर्भे०"
इति श्रुतैश्च ।
 
शङ्का--कारणशरीरं किम ?
 
अर्थ:--कारण शरार किसे कहते हैं ?
 
समाधान--अनिर्वाच्यानाद्यविद्यारूपं शरीरद्वयस्य
कारणमात्रं सत् स्वस्वरूपाज्ञानं निर्विकल्परूपं
यदस्ति तत्कारणशरीरम् ।