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उदाहरण--

यह तो आप जानते ही हैं कि ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ही यह शरीर
सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु को प्राप्त करता है परन्तु कैसे करता है ? एक
दृष्टान्त है, एक कामी पुरुष बैठा था कि एकाएक किसी तरफ से
मधुर छम २ की आवाज़ आई । तब इस शब्द को कानों ने सुनकर
नेत्रों से कहा कि इस रूप को जरूर देखना चाहिये। फिर तो नेत्रों से
न रहा गया उन्होंने शीघ्र ही कही हुई दिशा की तरफ देखना शुरू
किया । जब वह कामिनी नजदीक आ गई तब उस रूप को देख
प्रेसन्न हुआ । उसोसी समय नेत्रों ने नाक से कहा कि इसमें कैसी बू है
उसने झट से रोग की तरह चिकित्सा कर बतलाया कि अमुक इत्र
की खुशबू हैं। फिर तो क्या था, त्वचा ने चाहा कि इसे शीघ्र स्पर्श
करना चाहिए । जब स्पर्श कर लिया तब जिह्वेन्द्रिय ने रस ग्रहण
करने की इच्छा से उस कामिनी के अधरों में लगा हुआ थूक रूपी
रस को ग्रहण कर मन रूपी कामी पुरुष ने अपनी इच्छा पूर्ण की ।
इसी प्रकार यह परस्पर में कभी कोई आगे आती है, कभी कोई ।
इसी विषय का और दृष्टान्त कहें तो ग्रन्थ का विस्तार होता है, इस
लिये अब आगे का कार्यारम्भ करते हैं।
 
शङ्का-- कर्मेन्द्रियाणि कानि ?
 
समाधान-- वाक्-पाणि-पाद-पायूपस्थानीति पञ्च
कर्मेन्द्रियाणि । वाचो देवता वह्निः, हस्तयोरिन्द्रः,
पादयोर्विष्णुः, पायोर्मृत्युः, उपस्थस्य प्रजापतिरिति